देहरादून : 23 अप्रैल 1930 पेशावर विद्रोह_ _इतिहास में पेशावर काण्ड के नाम_ से _जाना जाता रहा है _,जब_ बीर गढ़वाली सैनिकों ने_ _चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में_ पेशावर के किस्साखानी बाजार(अब पाकिस्तान में ) में देश की आजादी के आन्दोलन की कड़ी में सत्याग्रह कर रहे पठान जनता पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया था । आज से ठीक 94 साल पहले 23अप्रैल 1930 को सेना के कप्तान रिकेट के आदेश पर पूरी गढ़वाली पल्टन की टुकड़ी को आन्दोलन को साम्प्रदायिक आधार पर कुचलने के लिए किस्साखानी बाजार कूच का आदेश दिया गया तथा कप्तान ने जैसे ही गढ़वाली फायर तो वहीं खड़े हवलदार चन्द्र सिंह गढ़वाली ने सैनिकों को आदेश दिया कि गढ़वाली सीज फायर । उनकी सूज बूज ने न केवल एक बड़ा नरसंहार होने से रोका बल्कि एक साम्प्रदायिक एवं देशभक्ति की मिसाल पेश की जो उसके बाद शहीदे आजम भगतसिंह एवं उनके साथियों ने पेश की । पेशावर से पूर्व 1857 के सैन्य विद्रोह मे ऐसी घटनाएं देखने को मिली थी जिसे तत्कालीन भारत के उत्तरी हिस्से को अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी बगावत के रूप में देखा गया । नाफरमानी की परिणाम क्या होगा ? गढ़वाली सैनिकों को पता था जिसके लिऐ चन्द्र सिंह ने उन्हें मानसिक रूप से तैयार किया था । चन्द्र सिंह उनके सैनिकों के सामने बहुत बड़ा लक्ष्य था ,आपसी सदभाव एवं देश की आजादी । पेशावर के सैनिक विद्रोह ने अंग्रेजी हुकूमत की चुले हिला कर रख दी । गढ़वाली सैनिकों को मालूम था कि अंग्रेज चन्द मुठ्ठीभर लोगों के सहारे हिंदुस्तान की करोड़ों करोड़ जनता का शोषण कर रहे हैं ।पेशावर काण्ड ने हिन्दुस्तान से लेकर लन्दन तक अंग्रेजों की नीद उड़ाकर रख दी । उसी दिन आनन फानन में विद्रोही सैनिकों की गिरफ्तारी तत्पश्चात मुकदमों का अन्तहिन सिलसिला चला जिसका कि बीर सैनिकों ने चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में बहादुरी से मुकाबला किया , देश की मुक्तिकामी जनता ने उनकी हर सम्भव मदद की । आज भी पेशावर विद्रोह के गढ़़वाली सैनिकों का नाम दोनों देश यानि भारत और पाकिस्तान में बड़े ही आदर से लिया जाता है ,और चन्द्र सिंह गढ़़वाली उनके हीरो हैं ।
पेशावर विद्रोह के सैनिकों ने लम्बी सजा काटने के बाद देश के लिए अपने संघर्ष को नहीं छोड़ा वे चन्दसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में आजादी की मुख्यधारा से जुड़े रहे ,वे गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय रहे तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन से भी जुड़े रहे तथा आजादी के हरेक आन्दोलन की मुख्यधारा में रहे ।वे पेशावर विद्रोह आन्दोलन से पहले ही कांग्रेसियों के साथ -साथ कम्युनिस्टों के सम्पर्क में रहे जिसका असर पेशावर विद्रोह में स्पष्ट परिलक्षित हुआ था । आजादी के बाद चन्द्रसिंह गढ़़वाली पूरी तरह से कम्युनिस्ट आन्दोलन से जुड़े तथा उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र पहाड़ को चुना जहाँ वे आम जनता की बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्षरत रहे ।उन्होंने कामरेड नागेंद्र सकलानी ,मोलू भरदारी की शहादत के बाद टिहरी राजशाही के खात्मे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ,वे आजीवन आमजन के मुद्दों को बडे़ ही सिद्दत के साथ उठाते रहे उन्होने अन्तिम सांस सीपीआई(एम) के दिल्ली स्थित कार्यालय में बर्ष 1979 में ली । उनकी अन्तिम यात्रा में देश की बड़ी -बड़ी हस्तियां शामिल हुऐ ।आज पेशावर विद्रोह के 94 बर्ष बाद भी कामरेड चन्दसिंह गढ़़वाली एवं उन बीर सैनिक जो आजादी के आन्दोलन के महानायक रहे ,जिनकी कुर्बानियों के चलते आजादी मिली ।पेशावर विद्रोह के अमर सैनानियों को शत् शत् नमन ।_