उत्तराखंड

2 अक्टूबर 1994 मुजफ्फरनगर काण्ड और उत्तराखण्ड राज्य की जनता : अनन्त आकाश।

देहरादून : राष्ट्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयन्ती है । देश व उत्तराखण्ड बापू को याद करते हुए इस दिन को हर साल काले दिवस के रूप में मनाती आ रही है। इसी दिन 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली जा रहे राज्य आन्दोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस प्रशासन द्वारा गोलीबारी की गई जिसमें कई आन्दोलकारी शहीद हुए, पुलिस ने महिलाओं के साथ शर्मशार करने वाली हरकतें सरकार की विभत्सा को प्रदर्शित करता है ।मुजफ्फरनग काण्ड के पीड़ितों को 29 साल बाद भी न्याय नहीं मिला ।
2 अक्टूबर 1994 को हम सभी अपने साथियों के साथ दिल्ली रैली के लिऐ जा रहे थे तथा घटनास्थल पर मौजूद थे । इस दौरान कई आन्दोलनकारियों को गोलीबारी से बचाया तथा घायलों को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाया। दिल्ली के बजाय हम सभी को वापस भेजा गया। सायं किसी तरह देहरादून लौट पाए । चारों ओर सन्नाटा था ,पुलिस तथा केन्द्रीय सुरक्षा बलों के सिवाय दूर दूर तक कोई नहीं नजर आ रहा था । अगले दिन यानी दोपहर 3 अक्टूबर 1994 को जोगीवाला में हमारे पार्टी के नेता दिवंगत कामरेड ओम प्रकाश चौधरी के पुत्र राजेश वालिया को पुलिस गोली का शिकार होना पड़ा। दून हास्पिटल में उन्हें मृत घोषित किया गया । राजेश की शहादत के तुरन्त बाद देहरादून में जिला प्रशासन ने कर्फ्यू घोषित किया ।हमनें पार्टी कार्यालय घण्टाघर में ही रुकने का फैसला किया तथा अपने सभी माध्यमों से दमनात्मक कार्यवाही के खिलाफ सम्पर्क करते रहे । इसी दौरान दमन, उत्पीड़न के खिलाफ तथा पीड़ितों की समुचित सहायता के लिए मानवाधिकार आयोग से सम्पर्क साधते रहे ,तब सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष थे । आगे चलकर दमन एवं उत्पीड़न के खिलाफ निरन्तर आन्दोलन हुए।संयुक्त मोर्चा की देवगौड़ा सरकार ने अलग राज्य की घोषणा की किन्तु उन्हें राज्य बनाने का मौका नहीं मिला। बाद में वाजपेयी सरकार ने उत्तरांचल नाम से अलग राज्य की स्थापना की। किन्तु वाजपेयी सरकार ने तमाम जन आकांक्षाओं को दरकिनार कर अपने ही संसाधनों से वंचित , एक अधिकारविहीन, राजधानीविहीन तथा सर्वमान्य उत्तराखण्ड नाम को दरकिनार कर उत्तरांचल नाम का राज्य ,यहाँ की जनता को दिया। विडम्बना है कि इन 23 सालों में राजधानी के नाम पर शासक दलों ने देश के अरबों-खरबों रुपऐ ठिकाने लगाए फिर भी जन आकांक्षाओं के प्रतीक गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं किया गया । राज्य बनने के बाद जन आकांक्षाओं की पूर्ति करने के बजाय भ्रष्ट राज नेताओं,अफसरों तथा भूमाफियाओं ने लूटपाट का कार्य किया तथा सुनहरे भविष्य का सपना देख रहे उत्तराखण्ड की जनता को बेहद निराश किया ।वर्तमान शासन में तो सभी हदें पार हुई है ं, उत्तराखंड के बचे-खुचे संसाधनों की लूटखसोट के लिए इनका केन्द्रीय नेतृत्व भी शामिल रहा है जिनकी अकूत सम्पत्तियों की लम्बी फैहरिस्त यहाँ मौजूद हैं । गरीब एवं जरूरतमन्द अगर नदी-नालों तथा खालों ,पंचायत की जमीनों में बसे हैं , तो उन्हे हर समय उजाडा़ जा रहा है । आज गुजरात से लेकर उत्तराखंड नशे की जद्द में है, जिस नशे के खिलाफ उत्तराखण्ड की मां,बहनों ने सतत संघर्ष किया तथा नशा नहीं रोजगार दो का नारा जन – जन तक पहुंचाया । शासकदलों ने उसे जनता को तोड़ने तथा अपनी रोजी रोटी का माध्यम बनाया आज रोजगार तथा रोटी के बजाय घर -घर नशे का व्यापार फैल गया है ।समाज एक बड़ा हिस्सा नशे की गिरफ्त में है । इन नापाक गठबंधन के कारण राज्य में अपराधिक घटनाओं की गिरफ्त में है । आज न्यायालयों से लेकर प्रशासन के पास भूमि ,नशे तथा के ऐसे मुकदमों की लम्बी फैहरिस्त है ,जहाँ भूमाफियाओं द्वारा सामान्य जनों एवं सरकारी भूमि पर कब्जा किया है।किन्तु भूमाफियाओं के खिलाफ कार्यवाही होना नामुमकिन सा लगता है । 1994 में भी रोजगार व पलायन का मुद्दा प्रमुख था । आज यही मुद्दा हम सबके के सामने विभित्स रूप में मुंहबाये खड़ा है ।अंकिता भण्डारी सहित अनेक युवक /युवतियों का मुद्दा भी कहीं न कहीं रोजगार से जुड़ा हुआ है ,यदि कोरोनाकाल में अंकिता के पिता का रोजगार न छीनता तो अंकिता को इतनी कम उम्र में रोज़गार के लिए न भटकना पड़ता , ना ही उसे दरिंदगी का शिकार होना पड़ता । इस प्रकार की सैकड़ों घटनाएं आये दिन होती आयी हैं, किन्तु अंकिता हत्याकांड सहित अनियोजित विकास के खिलाफ उठे जनाक्रोश ने आखिरकार हुकमारानों की चुलें हिलाकर रख दी तथा सताधारियों की दोगली राजनीति को बेनकाब करने का कार्य किया ।हालांकि अंकिता को तो वापस नहीं लाया जा सकता न उनके परिजनों के दुख को ही कम किया जा सकेगा किन्तु अंकिता की शहादत हमारे लिऐ एक सबक है । आज शासकदलों कि गलत एवं जनविरोधि नीतियों का कुप्रणाम आमजन रात दिन झेल रहा आज जिस विभाजन एवं साम्प्रदायिक राजनीति का ताण्डव सत्ताधारियों द्वारा खेला जा रहा है इसके खिलाफ अनवरत एवं निर्णायक संघर्ष की आवश्यकता है , जिसके लिए सतत प्रयास जरूरी है ।यही हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व उत्तराखण्ड आन्दोलन के शहीदों के प्रति सही मायनों में श्रद्धान्जलि होगी ।

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