नई दिल्ली

यमुना में उफान से दिल्ली में मची तबाही, कई बस्तियां जलमग्न।

नई दिल्ली : दिल्ली में बाढ़ की स्थिति गंभीर है और यमुना नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है. यह स्थिति हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज से लगातार पानी छोड़े जाने के कारण हुई है. गुरुवार सुबह 10 बजे यमुना का जलस्तर 207.47 मीटर दर्ज किया गया है. जो खतरे के निशान से करीब दो मीटर अधिक है. इससे पहले बुधवार 3 सितंबर को दोपहर 3 बजे पुराने लोहे के पुल (रेलवे ब्रिज) पर यमुना का जलस्तर 207.09 मीटर दर्ज किया गया था. राजधानी में अब तक 8,018 लोगों को राहत शिविर कैंपों में ले जाया गया है, जबकि 2,030 लोगों को 13 स्थायी आश्रय स्थलों में ट्रांसफर किया गया है।

जलस्तर कम होने की उम्मीद: एनडीआरएफ की 16वीं बटालियन के कमांडेंट, अबुजम बिजॉय कुमार सिंह ने कहा, जलस्तर स्थिर हो गया है, पूर्वानुमान के अनुसार रात 8 बजे तक यमुना नदी का जलस्तर कम होने की उम्मीद है. मोनेस्ट्री मार्केट और यमुना बाजार जैसे इलाके अभी भी जलमग्न हैं. उधर दिल्ली के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, यमुना नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण हम पूरी तरह तैयार हैं, हम लगातार स्थिति पर नजर रख रहे हैं, स्थिति फिलहाल नियंत्रण में है।

खतरे के निशान से ऊपर यमुना: दरअसल, पिछले कुछ दिनों से पहाड़ों और दिल्ली के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में हुई मूसलाधार बारिश के कारण यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ा है. हरियाणा के हथनीकुंड बैराज से भारी मात्रा में पानी छोड़े जाने के बाद, हालात और भी बद्तर हो गए. देखते ही देखते, यमुना खतरे के निशान 205.33 मीटर को पार कर गई और वर्तमान में 207.46 मीटर के करीब स्थिर है. हालांकि दो साल पहले वर्ष 2023 में तकरीबन इसी समय यमुना नदी का जलस्तर 208.66 मीटर से ऊपर पहुंच गया था, जिसने 1978 में दर्ज किए गए रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया था।

बाढ़ का कहर: बाढ़ का सबसे ज्यादा असर यमुना के निचले इलाकों और नदी के किनारे बसी झुग्गी बस्तियों पर हुआ है. ओल्ड यमुना ब्रिज, आईएसबीटी, आईटीओ, राजघाट, और लाल किला परिसर का एक हिस्सा और महत्वपूर्ण क्षेत्र पूरी तरह से जलमग्न हो गए हैं. सड़कों पर कई फीट तक पानी भर जाने से यातायात पूरी तरह से बाधित हो गया है. आईएसबीटी के पास कश्मीरी गेट और यमुना बाजार जैसे घनी आबादी वाले इलाके पानी में डूब गए हैं, जिससे हजारों परिवारों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है.

राहत कार्य नाकाफी: पूर्वी दिल्ली के शास्त्री पार्क, गांधी नगर के कुछ हिस्सों में भी पानी घुस गया है, जिससे लोग ऊंची जगहों पर शरण लेने को मजबूर हैं. सरकार की तरफ से स्थापित राहत शिविरों में बड़ी संख्या में विस्थापित लोग पहुंच रहे हैं, जहां उन्हें भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता प्रदान की जा रही है लेकिन, प्रभावित लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि राहत कार्य नाकाफी साबित हो रहे हैं. कई परिवारों को अपने बच्चों और बुजुर्गों के साथ प्लास्टिक की चादरों और अस्थायी तंबूओं के नीचे रहना पड़ रहा है।

सीएम ने की लोगों से अपील: सरकारी प्रतिक्रिया और राहत कार्य: दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) ने बाढ़ से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर राहत और बचाव अभियान शुरू किया है. नौकाओं का इस्तेमाल कर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है।

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने लोगों से अपील की है कि वे घबराएं नहीं और सरकार की तरफ से जारी किए गए निर्देशों का पालन करें. लेकिन, प्रशासन की तैयारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं. कई लोगों का मानना है कि सरकार को जलस्तर बढ़ने के शुरुआती संकेतों पर और अधिक तेजी से कार्रवाई करनी चाहिए थी. हथनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने की जानकारी मिलने के बाद भी, निचले इलाकों से लोगों को समय पर निकालने में देरी हुई, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ.

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: बाढ़ का आर्थिक प्रभाव भी बहुत गहरा है. दिल्ली की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले व्यापारिक क्षेत्र कश्मीरी गेट में भी पानी प्रवेश कर गया है. सड़कों पर पानी भर जाने से परिवहन लागत बढ़ गई है और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में भी बाधा आ रही है।

वहीं सामाजिक रूप से, यह बाढ़ एक बड़े संकट का रूप ले रही है. विस्थापित परिवारों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ रही हैं. सरकार ने स्वास्थ्य शिविर स्थापित किए हैं, लेकिन साफ-सफाई की कमी और भीड़-भाड़ वाले राहत शिविरों में इन बीमारियों के फैलने की संभावना एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है।

विशेषज्ञ ने बताया कारण: बाढ़ को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. जहां कुछ लोग इसे एक प्राकृतिक आपदा मान रहे हैं, वहीं कई पर्यावरणविद् इसे मानव-निर्मित संकट कह रहे हैं. उनका तर्क है कि यमुना के बाढ़ क्षेत्र पर अवैध निर्माण, अतिक्रमण और प्रदूषण ने नदी की प्राकृतिक प्रवाह क्षमता को कम कर दिया है. नदी के तल में गाद जमा होने से उसकी गहराई कम हो गई है।

जिससे थोड़े से पानी का स्तर बढ़ने पर वह किनारों को तोड़ देती है. इस आपदा ने दिल्ली के बुनियादी ढाँचे की कमियों को भी उजागर कर दिया है. जल निकासी व्यवस्था, जो पहले से ही मानसून की हल्की बारिश में भी जवाब दे देती है, अब पूरी तरह से चरमरा गई है. पंपों के फेल होने और जल निकासी चैनलों के अवरुद्ध होने से स्थिति और भी बिगड़ गई है।

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