उत्तराखंडराजनीति

कारपोरेटपरस्त नीतिया और मूल निवास का प्रमाण पत्र का सवाल : अनन्त आकाश।

अब पछावत क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत।

देहरादून : “चन्द महिनें बाद लोकसभा चुनाव आ रहे हैं, जिसके चलते आजकल हमारे राज्य में मूल निवास एवं जमीन का सवाल प्रमुखता से उठ रहा है ,इससे पहले भी उठा और नेपथ्य में चला गया ।इस मुद्दे पर 24 दिसम्बर 023 की महारैली मूलनिवासियों द्वारा मुकर्रर है , जिसमें वे अपने लिऐ मूलनिवासियों का हक मानेगें,रैली के समर्थन में राज्य के जाने माने सांस्कृतिक हस्तियां अपने गीतों के माध्यम समर्थन जुटा रहे‌‌ हैं ।
न्यायालय निर्णयानुसार निवास प्रमाण पत्र के* *मामले 09 नवम्बर 2000 से*पहले जो व्यक्ति उत्तराखंड में*था… वो यहाँ का*मूल निवासी है ….!* क्योंकि उत्तराखण्ड इससे पहले उत्तर_ प्रदेश का हिस्सा रहा तथा इस_तिथि से पहले जो इस भू भाग में रहा है _,उसे ही उत्तराखण्ड का_ निवासी माना गया है । _मूल_ निवासी कौन होगा इसके_ _लिये निर्धारित है कि पहाड़ों में _रह_रहे आबादी मूल निवासी _होंगे_ तथा मैदानी जिलों में रह रहे_ _आबादी को स्थाई निवासी_ माना जाऐगा । _यह सवाल कुछ लोगों द्वारा प्रमुखता से उठाया जारहा है उनके साथ यानि _मूल_ निवासियों के साथ _भेदभाव_ हो रहा है । _यह भी तर्क_ दिया जा है कि हमारे_ _संसाधनों पर बाहर से बसे लोगों_ ने _कब्जा कर दिया जबकि_ हकीकत यह है कि _शासक वर्ग की जनविरोधी_ _नीतियों का खामियाजा सभी लोगों को_ भुगतना पड़ रहा है ,चाहे वह अपने को मूल निवासी कहे या_ _फिर स्थायी निवासी कहे या फिर_ _आजीविका कमाने वाला बाहरी लोग उन सबको पहचान तथा सम्मान की_ _ समस्या सभी तरफ एक ही समान है।यह भी_ _सारस्वत सत्य है जितने भी लोग_ _अपनी रोजी रोटी के लिऐ_ _हमारे राज्य में आते_ _हैँ ,उससे कई गुना अधिक_ _उत्तराखण्ड के लोग अन्य राज्यों_ _में हैं ।_
*हिन्दुस्तान का संविधान हरेक* *नागरिक को रोजी रोटी* *का अधिकार देता है ,ऐसे* में *यह तर्क यथार्थ* *धरातल से परे है कि यहाँ बाहरी* *लोग रोजगार न करें ,* सभी को मिल जुलकर अपने* *बुनियादी अधिकारों के* *लिऐ एकजुटता के साथ आगे* *आना होगा ताकि हम सभी * *अपने भविष्य को बचा सकें ।* _देहरादून का आपको उदाहरण_ _दूं, जब से इन्वैस्टर_ _समिट हुआ तथा स्मार्ट सिटी का_ _हौवा चला तबसे निरन्तर_ _रेहड़ी ,पटरी ,ठेलियां ,खुमचा ,लधु_ _व्यवसायियों जिनमें मूल निवासी_भी हैं, आये दिन अतिक्रमण की आढ़ में गरीब लोगों हटाया जाना आम बात है।_ _उनकी सुध लेने वाला‌ आज कोई नहीं है_ । *औधोगिक क्षेत्रों ,निर्माण ** *क्षेत्रों में* *मजदूरों ,कर्मचारियों ** से *कम** *वेतन देकर ज्यादा से** *ज्यादा काम लिया जा रहा* *है ,सभी सरकारी संस्थानों* *में स्थाई नौकरियों के* स्थान आउटसोर्स तथा* *ठेका प्रथा के तहत काम चल रहा,* *आर्मी की सेवा को अग्निबिर के तहत स्थाई*रोजगार हम से पहले* *छिना जा चुका है,हमनें जिनको* *डबल इन्जन सरकार* *के नाम से बोट दिया*** *है ,उन्होंने हमें बुरी तरह* *छला है ,राज्य का नीति **** *निर्धारण दिल्ली से ह़ो*** *रहा*** *है,वह भी*** *बड़े*** घरानों के हित में ! सच*** तो यह है कि कारपोरेटपरस्त जनविरोधी नीतियों ने हमसे हमारे हक हकूक ,जल ,जंगल ,जमीन छिनने लिये हैं ,डबल इन्जन सरकार द्वारा तमाम नीतियां जो भी बनाई जा रही हैं ,वह बड़े – बड़े घरानों के हितों के लिऐ हैं। राज्य में जब भी भीमकाय परियोजनाऐं बनती हैं ,कारपोरेट हितों के लिऐ जंगल का अन्धाधुंध कटान ,पहडो़ं से छेड़छाड़ तथा जमीनों पर बड़े बड़े कब्जे होना आम बात है , तब हम चुप रहे ,जब निजीकरण की आढ़ में नौकरियां छिनी जा रही थी, रोजगार की मांग कर रहे बेरोजगारों पर बर्बर दमन होता है, तभी तमाम हस्तियां तथा मीडिया तथा जनप्रतिनिधि बगले झांकते रहे हैं ।
जब सरकार देहरादून में इन्वेस्टर समिट कराकर पहाड़ को बेचने का सौदा कर रही थी ,तब एक भी शब्द नहीं निकलता ,जब समिट के नाम पर करोड़ों – करोड़ रूपये लुटाये जाते तब कोई कुछ नहीं बोला तथा मीडिया भी समिट के प्रचार ‌के लिये सरकार से अच्छे खासे विज्ञापन लेकर अच्छी खासी कमाई करता रहा ।
मूल निवास आन्दोलन के पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि बाहर के लोग यहां बस रहे हैं,तो पूछना जरूरी हो गया उन्हें यहां कौन बसा रहा है । अपनी रोजी रोटी की तलाश में जिस प्रकार उत्तराखण्ड समाज के लोग देशभर में जा रहे हैं, ठीक उसी प्रकार अन्य राज्यों के लोग हमारे राज्य में आ रहे हैं ,हालांकि दोनों स्थितियों में आम जन कि हालात ठीक नहीं ,उन्हे न अच्छा वेतन मिल रहा ,न सुविधाऐं तथा सामाजिक सुरक्षा के अभाव में वे विवशता में जीवन यापन कर रहे हैं ।
हमारा प्रदेश कहने को तो ऊर्जा प्रदेश है ,पर हम सबसे मंहगी बिजली खरीदने के लिऐ मजबूर हैं। हाल‌ हि में चोर दरवाजे काफी पैसा बढा़या गया ,अप्रैल 024 में 23 प्रतिशत बृध्दि होगी । कुछ दिन बाद यह पावर सैक्टर कारपोरेट घरानों के हवाले हो जायेगा । हम पांच किलो मुफ्त चावल पर आत्ममुग्घ हैं,यह मालूम होना चाहिऐ इसके ऐवज में सरकार हमारा भबिष्य छिन रही है ,हमें इसके लिये भारी कीमत चुकानी पड़ रही है । हम अपने भविष्य से ज्यादा सत्ताधारियों के मकड़जाल में फंसे हुये हैँ । रामजी के भरोसे हैं कि वही बेडा़ पार कर लगायेंगे ।
कारपोरेटपरस्त नीतियों ने पहले जंगल छीने, फिर जमीन और अब सरकार हमारी पहचान छिनने पर आमादा हैं ! सरकार ने यह कदम गुपचुप तरीके से उठाया है ।

आज उत्तराखंड का बड़ा सवाल बड़ी पूंजी की लूट से राज्य से राज्य संसाधनों को बचाना है। आज जल, जंगल व जमीन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की लूट पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। जमीन के कानून का सवाल भी जमीन की लूट के लिए दरवाजे चौपट खोल दिए जाने के स्वाभिमान रैली के आयोजकों जिम्मेदारी बनती है कि वह सही बात को गलत ढंग से रखने का फायदा सत्तापक्ष व विभाजनकारी को न हो , यह ध्यान रखना ही होगा उत्तराखंडी लोग उत्तराखंड से अधिक उत्तराखंड से बाहर रहते हैं ?
*वाममोर्चे का बयान*
मूलनिवास और भूमि कानून का मामला बेहद संवेदनशील है, इसे बेहद समझदारी के साथ देखने-समझने-हल करने की आवश्यकता है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी राज्य के संसाधनों-जल, जंगल, जमीन पर पहला अधिकार, उस राज्य के मूलनिवासियों का होता है, होना चाहिए. राज्य की नियुक्तियों में भी पहली प्राथमिकता उस राज्य के मूलनिवासियों को मिलनी चाहिए.
लेकिन मूल निवास को बहाल किए जाने की मांग को पहाड़-मैदान और बाहरी- भीतरी के लबादे में लपेटना, अंध क्षेत्रीयतावादी उन्माद खड़ा करने की कोशिश है. यह कुछ लोगों को सस्ती लोकप्रियता तो दिला सकता है, लेकिन वह राज्य की उस बड़ी आबादी के हितों को सुरक्षित नहीं कर सकती,जिसके नाम पर यह अंध क्षेत्रीयतावाद का वितंडा खड़ा करने की जुगत की जा रही है.
क्षेत्रीय हितों या किसी राज्य के हितों की सुरक्षा और अंधक्षेत्रीयतावाद के बीच की रेखा बेहद बारीक है. यह अफसोस है कि राज्य के बेहद संवेदनशील सवालों का हल, अंधक्षेत्रीयतावादी उन्माद के जरिये तलाशने की कोशिश की जा रही है.
राज्य में यदि जल-जंगल-जमीन जैसे संसाधनों की बड़ी पूंजी द्वारा की जा रही लूट को अंधक्षेत्रीयतावादी उन्माद संबोधित नहीं करता बल्कि वह एक तरह से उसकी तरफ पीठ फेर लेता है. बड़ी पूंजी द्वारा राज्य के संसाधनों को हड़पे जाने के बीच यदि छोटे व्यवसाय, कारोबार और नौकरियों में आने वालों को बड़ा शत्रु बना कर पेश किया जाने लगे तो समझा जा सकता है कि अंततः यह किसका हित साधेगा.
बीते बरस उत्तराखंड में यूकेएसएसएससी से लेकर विधानसभा तक जो नौकरियों की लूट हुई, वो लुटेरे कौन थे ? अंकिता भंडारी हत्याकांड में वीआईपी को बचाने में जिस सत्ता ने अपना पूरा दम लगा दिया, उस सत्ता के जो चेहरे हैं, वे कोई बाहर से नहीं आए हुए हैं. ये सब इसी राज्य के वाशिंदे हैं, मूल निवास बनेगा तो हाकम सिंह रावत, चन्दन मनराल और संजय धारीवाल का भी बनेगा ! विधानसभा में बैकडोर से अपने चहेतों को नियुक्त करने वाले सारे पूर्व अध्यक्ष और बैकडोर से नियुक्ति पाने वाले भी इस श्रेणी में आएंगे ही !
इस मसले पर यह भी ध्यान रखने की बात है कि देश के विभाजन के समय शरणार्थी हो कर आई बड़ी आबादी को तराई में बसाया गया, उसका कोई दूसरा राज्य नहीं है तो उसके हितों की सुरक्षा भी हमारा ही जिम्मा है. दलित- गरीब- भूमिहीनों के लिए भी मूल निवास का सवाल दूर की कौड़ी ही है.
भू कानून के मसले पर भी हमारा यह मानना है कि उत्तराखंड की ज़मीनों की बेरोकटोक बिक्री का जो अभियान विधानसभा से कानून पास करवा कर त्रिवेन्द्र रावत ने शुरू किया और पुष्कर सिंह धामी ने आगे बढ़ाया, उसे खत्म करने की जरूरत है. यह हैरत की बात है कि वही सरकार जिसने पूरा पहाड़ बेचने के लिए विधानसभा से कानून पास किया, उसी भाजपा सरकार ने “लैंड जेहाद” का वितंडा खड़ा कर राज्य में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने का अभियान भी चलाया.
भू कानून के लिए गठित एक समिति की रिपोर्ट का परीक्षण करने के लिए साल भर बाद दूसरी कमेटी बनाने की पुष्कर सिंह धामी सरकार की घोषणा, हास्यास्पद और आँखों में धूल झोंकने वाली है.
भू कानून के मसले पर पहली जरूरत है कि 2018 में भू कानून में हुए संशोधन को रद्द किया जाये. कृषि भूमि के गैर कृषि कार्यों के लिए खरीद पर रोक लगे. पर्वतीय कृषि को जंगली जानवरों के आतंक से बचाते हुए उसे उपजाऊ और लाभकारी बनाने के विशेष उपाय किए जाने की जरूरत है.
उत्तराखंड को समग्र भूमि सुधार की आवश्यकता है. इसके लिए तत्काल भूमि बंदोबस्त की आवश्यकता है. भूमिहीनों को, जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश दलित आबादी है, भूमि का वितरण किए जाने की आवश्यकता है और उसके पश्चात चकबंदी हो.
बेरोजगारी, रोजगार की अवसरों की लूट, पलायन और संसाधनों की लूट से उत्तराखंड जूझ रहा है, जिसके लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं. संसाधनों की लूट बड़ी पूंजी द्वारा की जा रही है. इन के विरुद्ध संघर्ष करने का कठिन-कठोर रास्ता चुनने के बजाय बाहरी-भीतरी का सस्ता रास्ता अपनाया जाएगा तो सनसनी जरूर पैदा होगी परंतु हल नहीं निकलेगा और यह प्रकारांतर से लुटेरी सत्ता और लूट की लाभार्थी बड़ी पूंजी की ही मदद करेगा ।

समर भंडारी
राष्ट्रीय परिषद सदस्य
भाकपा
राजेंद्र सिंह नेगी
राज्य सचिव
माकपा

इन्द्रेश मैखुरी
राज्य सचिव
भाकपा (माले)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button