उत्तराखंडदेहरादून

स्वास्थ्य मौलिक अधिकार संघर्ष समिति का गठन।

राइट टू हेल्थ बिल को राज्यव्यापी आंदोलन बनाने की तैयारी तेज।

हल्द्वानी : उत्तराखंड में जर्जर होती स्वास्थ्य व्यवस्था के खिलाफ लगातार उठ रही जनभावनाओं के बीच किसान मंच ने रविवार को हल्द्वानी में आयोजित एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता में पूरे राज्य के स्वास्थ्य आंदोलनों को एकजुट कर “स्वास्थ्य मौलिक अधिकार संघर्ष समिति” के गठन की घोषणा की। इस समिति को राइट टू हेल्थ बिल की मांग को राज्यव्यापी आंदोलन में बदलने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। समिति के माध्यम से सभी जिलों और ब्लॉकों में स्थानीय स्वास्थ्य आंदोलनों को एक साझा मंच पर लाकर एक समन्वित संघर्ष तैयार किया जाएगा। इस घोषणा को उत्तराखंड में स्वास्थ्य अधिकार से जुड़े आंदोलनों का अब तक का सबसे बड़ा संगठित कदम माना जा रहा है।

प्रेस वार्ता में सुईयालबाड़ी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जनांदोलन की संयोजक भारतेंदु पाठक, भिकियासैंण आंदोलन की प्रमुख कुसुमलता बौड़ाई, किसान मंच के संरक्षक पियूष जोशी और किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय विशेष रूप से उपस्थित रहे। पहाड़ी आर्मी के सदस्यों ने भी समिति को औपचारिक समर्थन दिया। वक्ताओं ने कहा कि अब समय आ गया है कि प्रदेश के सभी स्वास्थ्य आंदोलनों को एक धागे में पिरोकर सरकार पर निर्णायक दबाव बनाया जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार स्वास्थ्य को लेकर संवेदनशीलता दिखाने में विफल रही है और जहां-जहां जनता संघर्ष कर रही है, वहाँ सरकार संवाद स्थापित करने से बच रही है।

प्रेस वार्ता में तय किया गया कि स्वास्थ्य मौलिक अधिकार संघर्ष समिति के तहत दिसंबर और जनवरी में पूरे प्रदेश में व्यापक जागरूकता अभियान चलाया जाएगा। हर जिले और ब्लॉक में समितियाँ गठित की जाएँगी, जिनमें ऑपरेशन स्वास्थ्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे आंदोलनों के संयोजकों को प्रमुख जिम्मेदारियाँ सौंपी जाएँगी। समिति का उद्देश्य स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार घोषित कराने के लिए एक मजबूत जनदबाव तैयार करना है। किसान मंच ने स्पष्ट किया कि आने वाले महीनों में यह संघर्ष गांव-गांव और जिला-दर-जिला विस्तार पाकर 2027 के विधानसभा चुनाव तक एक निर्णायक मुद्दे के तौर पर उभरेगा।

सल्ट क्षेत्र में आंदोलन का नेतृत्व कर रहीं कुसुमलता बौड़ाई ने कहा कि उन्होंने अपना स्थानीय आंदोलन केवल अस्थायी रूप से स्थगित किया है और फरवरी में 18 से 20 तारीख के बीच इसे पुनः शुरू किया जाएगा। उनके अनुसार यह लड़ाई अब किसी एक ब्लॉक की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की लड़ाई बन चुकी है। वहीं भारतेंदु पाठक ने कहा कि सुईयालबाड़ी में आंदोलन की आवाज एक बार फिर तेज होगी और यह संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक राज्य स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार नहीं बनाता और स्थायी डॉक्टरों की नियुक्ति सुनिश्चित नहीं करता।

प्रेस वार्ता में किसान मंच के संरक्षक पियूष जोशी ने राज्यभर के निजी अस्पतालों पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि उत्तराखंड क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2013 के तहत यदि ईमानदार छापेमारी कराई जाए, तो लगभग 95 प्रतिशत निजी अस्पताल नियमों के अनुरूप नहीं पाए जाएंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि विशेषज्ञ डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में सेवा न देकर निजी अस्पतालों में अपनी दुकानें चला रहे हैं, और यदि कानून का पालन हो तो उन्हें सरकारी ढांचे में सेवा देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था को बचाने के लिए “सेटिंग–गेटिंग संस्कृति” समाप्त कर ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है।

राइट टू हेल्थ बिल के मसौदे पर बात करते हुए किसान मंच के अध्यक्ष कार्तिक उपाध्याय ने बताया कि समिति बिल में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार घोषित करने, आपातकालीन सेवा में बिना अग्रिम भुगतान के इलाज, प्रसूति और दुर्घटना जैसी सेवाओं को पूर्णत: निःशुल्क करने, प्रत्येक जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 24 घंटे उपलब्धता सुनिश्चित करने, निजी अस्पतालों में दरों और उपचार पैकेजों को विनियमित करने, एम्बुलेंस और ट्रॉमा सिस्टम को मजबूत करने, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाइयों की उपलब्धता अनिवार्य करने और ग्रामीण डॉक्टरों की अनिवार्य तैनाती जैसे प्रावधानों को शामिल करने की मांग करेगी। उनका कहना था कि यह बिल केवल कागजी दस्तावेज न बनकर एक जीवनरक्षक व्यवस्था होना चाहिए।

प्रेस वार्ता के अंत में पहाड़ी आर्मी के जिला अध्यक्ष ने भी अपने संगठन की ओर से संघर्ष समिति को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की। किसान मंच ने चेतावनी दी कि यदि स्वास्थ्य मंत्री बाहरी राज्यों में जाकर उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था का गलत प्रचार करेंगे, तो संघर्ष समिति के सदस्य वहाँ जाकर वास्तविक सच्चाई जनता के सामने रखेंगे। आंदोलनकारियों ने कहा कि यह लड़ाई किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ है जिसने उत्तराखंड की जनता को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित किया है।

स्वास्थ्य मौलिक अधिकार संघर्ष समिति के गठन के साथ स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले महीनों में उत्तराखंड में स्वास्थ्य अधिकार को लेकर व्यापक और तीव्र आंदोलन देखने को मिलेगा। राइट टू हेल्थ बिल की मांग अब किसी एक संगठन की नहीं, बल्कि पूरे राज्य के जन-आंदोलनों की सामूहिक आवाज बन चुकी है, जो प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button