उत्तराखंडदेहरादून

केदारनाथ त्रासदी के सबक, हमनें सीखे नहीं : अनन्त आकाश।

केदारनाथ : त्रासदी को 11बर्ष पूरे हो जाऐंगे ।16 जून 2013 को सुबह – सुबह ही दुनिया ने ऐसा मंजर देखा कि वे हतप्रभ रह गये ।.केदारघाटी का बड़ा हिस्सा मलवे में तब्दील हो गया , जहाँ देखा तबाही ही तबाही थी । हजारों लोग जिनमें तीर्थयात्री ,स्थानीय व्यवसायी तथा मजदूर असमय मृत्यु के शिकार हो गये । इस आपादा में बचे खुचे लोगों की भूख प्यास से मृत्यु हुई । मानवीय क्षति के साथ ही बाढ़ की चपेट में पालतु पशु ,आवास तथा सरकारी सम्पत्ति से लेकर खेत खलिहान सब कुछ नष्ट हुआ । घटना के काफी घण्टों बाद सरकार चेती, इससे पूर्व ही कुछ बहादुर साथियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की सहायता करनी शुरू की तथा फंसे हुऐ तीर्थ यात्रियों तथा स्थानीय लोगों के लिए खानपान ,आवास दवा की व्यवस्था की ।हमारी पार्टी सीपीआई (एम)की टीम तत्काल 16 जून 2013 को स्थिति का जायजा लेने प्रभावित क्षेत्र के लिए रवाना हुई ,इस दौरान उन्होंने अधिकांशत: पैदल ही रास्ता तय किया क्योंकि सड़क मार्ग लगभग नदी की बाढ़ के साथ बह चुका था । टीम ने बस्तुस्थिति से पार्टी राज्य कार्यालय को अवगत कराया और राज्य ने केन्द्र को तथा पूरे देश में पार्टी द्वारा पीड़ितों की सहायता के लिए जगह जगह धन संग्रह एवं आवश्यक सामग्री जुटानी शुरू की जो कई किश्तों में प्रभावित क्षेत्रों को पहुंचाने का कार्य पार्टी एवं जन संगठनों ने शुरू किया ।साथ ही मेडिकल कैम्प लगाने के लिए दवाईयां एकत्रित की गई ।केरल आदि क्षेत्रों से चिकित्सकों की टीम भी कई दिनों तक प्रभावित क्षेत्रों में रही तथा पीड़ितों को हर प्रकार की सहायता दी गई।देहरादून में हमारी पार्टी एवं जन संगठनों द्वारा भी सभी प्रकार की सहायता एकत्र कर केदारघाटी के दुर्गम स्थानों तक पहुंचाई।

हमारी पार्टी ने शुरू से ही पहाड़ में हो रहे अनियोजित विकास तथा बड़ी बड़ी निर्माणधीन जल विधुत परियोजनाओं ,सड़कों के लिए हो रहे अनाप शनाप चट्टानों पर बिस्फोट एवं जगंलों का कट्टान तथा मलवे को नदियों के इर्दगिर्द फेंकना आदि के सन्दर्भ में सरकार तथा निर्माण एजेन्सियों को चेताया था । साथ ही इस सन्दर्भ में बर्षों तक आन्दोलन भी चलाया । सरकार को यह भी सलाह दी गई थी कि केदारनाथ यात्रा के लिए सुनियोजित योजना एवं प्रबन्धन हो तथा स्थानीय लोगों की हरेक स्तर पर सहभागिता सुनिश्चित की जाऐ , जिसे सरकार ने नजरअंदाज किया । वहीं सरकार वैज्ञानिकों की चेतावनियों की अनदेखी करती रही ,जो आज तक जारी है।

2013 के बाद आज सर्वाधिक तीर्थ यात्रियों का सैलाब केदारनाथ एवं अन्य तीन घामों में देखने को मिल रहा है किन्तु सरकारी तन्त्र अभी भी व्यवस्थाओं के प्रति उदासीन है । उदाहरण आपके सामने है । मार्च तक सरकार चुनावों में व्यस्त थी और अप्रैल में आनन फानन में बैठक बुलाकर खानापूर्ति की गई । अभी तक भारी अव्यवस्थाओं के परिणामस्वरूप दर्जनों तीर्थ यात्रियों की जाने जा चुकी हैं इससे भी ज्यादा लोग सड़क दुर्घटना में मारे जा चुके है ,वनाग्नि से अलग दर्जनों घटनाओं में मारे जाने वालों की संख्या अलग है । अभी जो कुछ भी व्यवस्थाऐं देखने को मिल रही हैं , उसके लिऐ स्थानीय लोगों का सराहनीय योगदान है । जिन्होंने अपने नीजि संसाधनों एवं बैंकों तथा नीजि कर्जा लेकर ऐ साधन जुटाऐं हैं जो अपना रोजगार भी कर रहे हैं और तीर्थ यात्रियों की सेवा तथ्य देखभाल भी कर रहे हैं ।

एक अनुमान के अनुसार बर्ष 2013 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने केदारनाथ धाम के पुर्ननिर्माण के लिए 2700करोड़ जारी किये थे । बाद में केन्द्र एवं राज्य में भाजपाराज के कारण मोदी सरकार ने कार्य करवाने के बजाय केदारनाथ धाम की आड़ में राजनीति करना शुरू किया कभी लेजर शो तो कभी चुनाव के ऐन पहले तपस्या के बहाने गुफा में बैठकर बहुमत बोटों का धुव्रीकरण करना मुख्य समस्याओं से ध्यान हटाने के सिवाय कुछ नहीं था जो आज तक जारी है । स्थिति आज भी बदली नहीं है , 2013 के बाद केदारघाटी से बहुत ही बड़ा पलायन मैदानी जिलों के लिए हुआ , जिसमें बड़ी संख्या में लोग देहरादून ,हरिद्वार आकर बसे । जनपद रूद्रप्रयाग सहित केदारघाटी में आज तक भी कोई बड़ा स्वास्थ्य ,रोजगार तथा शिक्षा का केन्द्र तक नहीं है । परिणामस्वरूप स्वास्थ्य ,शिक्षा तथा रोजगार के लिए स्थानीय आबादी को मैदानी जिलों के लिए जाने के मजबूर होना पड़ता है ।सरकार ने आलवेदर रोड़ ,रेलवे परियोजना तथा जल विधुत परियोजनाओं के नाम पर पहाड़ को छलनी छलनी कर दिया सरकार की नीतियों ने बड़े बड़े लोगों पहाड़ को लूटने का रास्ता खोल दिया ।2013 के बाद जोशी मठ टनल में 200मजदूरों का दफन होना ,2024 में सिल्यकारा टनल हादसे से भी सबक न लेना दुर्भाग्यपूर्ण है ।

सरकारों को चाहिए कि वह जनपक्षधरता की नीतियों को अपनाकर जनता के लिए सही मायने में कार्य करे ।

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