उत्तराखंडदेहरादून

नदी नालों के किनारे बसी बस्तियों पर चलेगा नगर निगम का बुलडोजर।

देहरादून : नदी-नालों के किनारे स्थित बस्तियों में लगातार हो रहे अवैध निर्माण पर अब कार्रवाई का डंडा चलने वाला है। हाईकोर्ट के निर्देश पर नगर निगम ने अवैध निर्माण चिहि्नत करने का कार्य शुरू कर दिया है।

सर्वे करने के बाद सप्ताहभर में नगर निगम की ओर से ऐसे भवन स्वामियों को नोटिस भेजे जाएंगे। स्वयं अतिक्रमण न हटाने पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई भी की जा सकती है। कार्रवाई में बाधा उत्पन्न करने वालों पर भी विधिक कार्रवाई करने की तैयारी है।

देहरादून नगर निगम क्षेत्र में स्थित कुल 129 बस्तियों को चिहि्नत किया गया है, जिनमें 40 हजार भवन होने का अनुमान है। हालांकि, वर्ष-2016 के बाद किए गए निर्माण नियमानुसार अवैध करार दिए गए हैं। कोई रोक-टोक न होने के कारण शहर के विभिन्न क्षेत्रों में अवैध रूप से बस्तियों का विस्तार कर दिया गया और सैकड़ों नए भवन तैयार कर दिया गया। इस ओर बीते आठ वर्ष से नगर निगम ने भी ध्यान नहीं दिया।

अब हाईकोर्ट के आदेश पर नगर निगम ने बस्तियों में वर्ष-2016 के बाद बने अवैध भवनों का सर्वे शुरू कर दिया गया है। पहले चरण में रिस्पना नदी के किनारे स्थित बस्तियों में अवैध निर्माण चिहि्नत किए जा रहे हैं। नगर आयुक्त गौरव कुमार ने बताया कि एक सप्ताह के भीतर सर्वे पूरा हो जाएगा। इसके बाद नोटिस भेजकर निर्माण ध्वस्त करने को कहा जाएगा। स्वयं निर्माण न हटाने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। बिंदाल नदी के किनारे भी जल्द सर्वे होगा।

मलिन बस्ती अधिनियम के तहत वर्ष 2016 के बाद निर्माण अवैध है। ऐसे में नगर निगम की टीम यह जांच कर रही है कि वर्ष 2016 के बाद मलिन बस्तियों में बिजली-पानी के कनेक्शन लिए गए हैं या नहीं। इसके लिए ऊर्जा निगम और जल संस्थान का भी सहयोग लिया जा रहा है।

वर्ष 2016 के अक्टूबर में बस्तियों के नियमितीकरण को मालिकाना नीति बनाई गई, लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण नियमितीकरण का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया। वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने शहर की सभी अवैध बस्तियों को खाली कराने के आदेश दिए, लेकिन तत्कालीन सरकार ने बस्तियों को बचाने के लिए तीन साल का अध्यादेश विधानसभा में पास कर दिया।

हालांकि, वर्ष 2016 में चिहि्नत की गई बस्तियों और भवनों को ही सरकारी रिकार्ड के हिसाब से वैध माना गया और उसके बाद के निर्माण अवैध घोषित किए गए। लेकिन, अवैध निर्माण पर कार्रवाई कभी नहीं की जा सकी। राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए अवैध बस्तियों को खाली नहीं होने देते। अब एक बार फिर कोर्ट की सख्ती के बाद नगर निगम कार्रवाई के मोड में आया है।

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