देहरादून : आधारिक रूप से 1975 से संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) द्वारा 8 मार्च को महिलाओं के समानता एवं सशक्तिकरण के संकल्प के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाया जाने लगा है, किन्तु अभी भी महिलाओं के प्रति नजरिये को बदलने का सवाल केन्द्र में है, समानता का सवाल तो इसका अगला पड़ाव है, जब तक हम इसकी शुरुआत समाज की पहली इकाई घर से नहीं करेंगे तो इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाऐगी, समाज के दृष्टिकोण में बदलाव तो अगले पायदान का हिस्सा है ।
आज परिवार एवं समाज में इसके लिए सतत् संघर्ष चलाने की आवश्यकता है, यह भी सत्य है कि बालिका के रूप में भेदभाव घर ही से शुरू होता है, यह दीगर है कि बालिकाओं के प्रति शिक्षा, स्वास्थ्य तथा उनके बेहतरीन भविष्य के दृष्टिकोण पर समाज में कुछ बदलाव आया है जो कि नाकाफी है, फिर भी हम इसे शुरुआत एवं आशा की किरण मानते है।
आज से 100 साल पहले जब सोबियत संघ में कम्युनिस्ट सत्ता की शुरुआत हुई थी, तभी 1921में कम्युनिस्ट पार्टी के लिए महिला अधिकार एवं उनके सशक्तिकरण का सवाल प्रमुखता से रहा है, यह कहना सर्वाधिक समचिन होगा कि महिला अधिकारों के लिए जहाँ भी संघर्ष हुऐ वहाँ कम्युनिस्ट पार्टियों ने हिरावल दस्ते के रूप में कार्य किया है, आज भी विश्व के सबसे जनतांत्रिक देश कह जाने वाले हमारे देश में साम्प्रदायिक, जातिवादी तथा सामाजिक तथा आर्थिक उत्पीड़न के खिलाफ कम्युनिस्ट विचारधारा के इर्दगिर्द ही देशभर में सतत् संघर्ष चल रहे है।
इन संघर्षों में अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एड्वा)एवं कामगार महिला यूनियनें सहित अनेक प्रगतिशील सोच के लोग अंग्रिम पंक्ति में है, जिनके नेतृत्व ने संसद,राज्य विधायकाओं से लेकर सड़कों तक इस सन्दर्भ में बखूबी भूमिका निभाई जा रही है, आजाद हिन्द फौज की महिला विंग की कमाण्डर कैप्टेन लक्ष्मी सहगल जीवन के अन्तिम क्षणों तक एड्वा का नेतृत्व किया ।
आज उन तमाम महिलाओं जैनी मार्क्स, रोजा लक्जमबर्सां, सद क्लारा जेटकिन, मैडम क्यूरी, मैडम कामा, महादेवी वर्मा, मन्नू भण्डारी, दुर्गा भाभी,बीना दास, अरूणा आसिफ अली, सुशीला गोपालन, सहौद्राबाई राय, मातंगी हाजरा, कनक लता बरूवा ,तारारानी श्रीवास्तव ,सुचिता कृपलानी ,ननीबालादेवी ,सरस्वती देवी ,अंकमा चिरयन रानी चेन्नमा, रानी बेलू नचियार,माता भाग कौर,जानकीदेवी बजाज ,अंजनादेवी चौधरी ,रत्न शास्त्री, रमादेवी ,किशोरी देवी ,कालीबाई ,भीकाजी कामा,उषा मेहता, बिशनीदेवी शाह ,पार्वती गिरी ,रानी दुर्गा वती ,झलकारी बाई ,शुभद्राबाई चौहान, सरोजनी नायडू ,दुर्गावती,,स्वरूप रानी नेहरु ,रूपरानी ,उर्मिला देवी शास्त्री, रानी सरौज गौरीहार ,उदादेवी ,विशनीदेवी ,वेगम हजरत महल ,ऐनी बैसेन्ट ,रानीलक्ष्मीबाई ,कस्तूरबा गांधी, आनन्दीबाई, विजय लक्ष्मी पण्डित ,रानी खैरगढ़ी ,अवन्ती बाई लोधी ,दीपा मेहता ,मीरानायर ,मेघना गुलजार ,नन्दिता दास ,अर्पणा सेन,स्मिता पाटिल ,हेलेन केलर , तसलीमा नसरीन,सानिया मिर्जा ,नरगीश दत्त ,साबना आजिमी ,लता मंगेशकर,,,हमारे देश की प्रथम शिक्षिका साबित्री फुले ,बेगम फातिमा बीबी,पूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ,बीरंगाना रानी लक्ष्मी बाई तिलू रौतेली ,गौरादेवी ,टिंचरी माई ,बसन्ती बिष्ट ,पीटी ऊषा ,मैरीकौम ,सानिया नेहवाल ,बचेन्द्री पाल ,साक्षी मलिक ,बबीता फोगाट ,बृन्दा करात ,सुभाषिणी अली ,,,आदि अनेकों अनेक को याद करनी की आवश्यकता है , जिन्होने विपरीत से विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी समाज को दिशा देने का कार्य किया है ।
1921से पूर्व 1909 तथा उसके बाद भी अमेरिका में समाजवादी विचारधारा के वैनर तले महिलाओं अधिकारों के लिए अनेक सवाल उठाये गये जिनमें काम के 8 घण्टे करना है इसके बाद व पहले जर्मनी ,फ्रान्स तथा इग्लैंड इसके केन्द्र में रहे । *जर्मनी में तो हिटलरशाही के खिलाफ लड़ते हुऐ कामरेड रोजा लक्जम वर्ग को शहादत देनी पड़ी नाजियों ने उनकी हत्या कर डाली ।
आज भी हमारे देश सहित विश्व के पूंजीवादी देशों में यह सवाल प्रमुख है :- समान कार्य के लिए समान वेतन ,कार्य स्थलों से लेकर समाज में महिलाओं के सुरक्षा के सवाल । प्रथम विश्व युद्ध से लेकर दूसरे विश्व तथा दुनियाभर के युध्दों तथा साम्राज्यवादियों तथा फांसीवादियों के करतूतों ने तो शुरुआत से लेकर अब तक अपनी निहित स्वार्थों की पूर्ति तथा अपने हथियारों के जखीरे को खिफाने तथा विश्व बाजार में कब्जे की होड़ में हायतौबा मचा रखी है ,रूस व यूक्रेन तथा फिलिस्तीन पर इजराईल युद्ध तथा विश्व भर में तमाम अव्यवस्थाओं के लिए ऐ तथा इनके पिछलग्गू जिम्मेदार हैं ,जिनमें हमारे देश की कुछ साम्प्रदायिक एवं फूटफरस्त तत्व भी शामिल हैं । जिनका नेतृत्व विश्व स्तर पर अमेरिकी निजाम कर रहा है ।इसे भी भलीभाँति समझने की आवश्यकता है ।
शान्ति एवं सौहार्द, आपसी भाईचारे का सवाल हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनुभव बताता है कि जब भी अशांति हुई तथा युद्ध हुऐ ,समाज में तनाव रहा उसका सर्वाधिक कष्ट तथा नारकीय जीवन जीने के लिए महिलाओं एवं बच्चों को विवश होना पड़ा है, समाज में अपराधीकरण तथा धार्मिक कट्टरता का शिकार भी महिलाओं को ही होना पड़ता ,किसी देश में अशान्ति हो ,साम्प्रदायिक दंगे हों या फिर युद्ध या बिस्थापन हो सबसे पहले दुश्मन के हमले महिलाओं एवं बच्चों पर ही होते* आये हैं । हमारे देश में मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते 2002 के साम्प्रदायिक दंगे तथा नागरिक संशोधन कानून के संघर्ष में एकजुट लोगों के खिलाफ दिल्ली दंगा या फिर कश्मीर सहित पूर्वोत्तर के अशान्त राज्य तथा 1984 में सिखों के खिलाफ हुऐ दंगों का सर्वाधिक असर महिलाओं एवं बच्चों पर ही पड़ा ।
इसी प्रकार उत्तराखण्ड की अंकिता भण्डारी जधन्य हत्याकांड सहित महिलाओं के खिलाफ अमानवीय असंख्य घटनाऐं तथा मणिपुर में वर्तमान सत्ताधारी दल की काली करतूतों ने महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं को संरक्षण एक सुनियोजित अपराध का खुलासा किया है, नारी बन्धन, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा वर्तमान सत्ताधारियों का सत्ता पर कब्जा बनाये रखने का जरिया मात्र है ।
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का सन्देश स्वाधीनता, समानता, नारी मुक्ति का सन्देश व्यापक हो, इन्हीं मुद्दों को केन्द्र में रखकर संघर्ष को व्यापक तथा सही दिशा में ले जाने के संकल्प साथ ही विश्व की आघी आबादी को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।