देहरादून : 1980 में डीएवी महाविद्यालय देहरादून में बीए प्रथम बर्ष में कैम्पस प्रवेश किया ।उन दिनों महाविद्यालय में विभिन्न छात्र संगठन एवं छात्रों के ग्रुप अपने – अपने तरीके से सक्रिय थे । शुरूआती दौर में एक नोसिखिया होने के कारण अन्य छात्रों की तरह ही बाहरी दुनिया का ज्यादा अता पता नहीं था ।शुरूआती दौर में छात्रों की तरह ही दो छात्र संगठनों जिनमें एबीवीपी एवं एस एफ आई का सदस्यता आम बात थी । यहाँ तक कि बर्ष 1980 तथा 1981 के शुरुआती समय एबीवीपी के मथुरा एवं बरेली राज्य सम्मेलन में देहरादून से छात्र गये जिनमें भी शामिल धा । किन्तु मुख्य रूप से राजनैतिक ,सामाजिक परिवर्तन बर्ष 1981 की 15 सितंबर की दिल्ली संसद मार्च रैली से आया । जिसका केन्द्रीय नारा था , “सबको शिक्षा ,सबको काम ‘ इस ऐतिहासिक रैली का आयोजन एस एफ आई एवं डीवाईएफआई ने संयुक्त रूप से किया था । संसद के सामने ऐतिहासिक वोट क्लब में रैली आमसभा में बदली तथा देश की सरकार से पुरजोर तरीके सबको शिक्षा ,सबको काम की मांग की गई ।इस प्रकार की बड़ी रैली दिल्ली में न इससे पहले हुई ,न उसके बाद ही हो पाई है । आज विपरीत राजनैतिक परिस्थितियों के चलते सरकार की जनविरोधी एव साम्प्रदायिक, कारपोरेटपरस्त ,विनाशकारी तथा फूटपरस्त नीतियों के विरोध में इस प्रकार की दिशा देने वाली रैलियों की देश को आवश्यकता है । इस रैली में उस दौर में जिसमें लाख से ज्यादा छात्रयुवाओं ने हिस्सा लिया जो कि अपने में मायना रखता जिसमें देश के विभिन्न कोने से लालकिले के छात्रयुवा मैदान में जमा हुऐ थे ।
आपको याद होगा कि मतदान की उम्र 18 बर्ष करने की मांग मूलतः हमारे संगठनों की रही है ।आगे चलकर जिसे राजीव गांघी की सरकार ने पूरा किया । रैली में शामिल होने के बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा एस एफ आई के निर्माण में दिन रात एक कर दिये छात्रयुवाओं एवं समाज की कोई भी राजनैतिक ,सामाजिक ऐतिहासिक लडा़ई हमसे नहीं छूटी जिसमें कि हम लोग शामिल नहीं हुऐ हों ।
बर्ष 1982 आते आते मैं डीएवी इकाई के सचिव तथा 1983 जिलासचिव तथा 1986 में आगरा राज्य सम्मेलन में उत्तर प्रदेश संयुक्त सचिव के बाद बर्ष 1991 में लखनऊ सम्मेलन में एस एफ आई उत्तर प्रदेश का राज्य अध्यक्ष बनना एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल करने के समान ही है ।
संक्षिप्त में इसलिए मेरे जीवन में 15 सितंबर 1981की दिल्ली रैली का बहुत ही बड़ा मायना है । सबक एवं प्रेणा यही है कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी अपने राजनैतिक ,सामाजिक ,वैचारिक लक्ष्य के साथ आगे बढ़ते रहो । मंजिल तो मिल ही जाऐगी ।
वर्तमान में हमारे देश में एक ऐसी विचारधारा के लोग सत्तासीन हैं जो कि देश के आधारभूत ढांचे के खिलाफ हैं ।इन शक्तियों के खिलाफ मिल जुलकर लड़ना हम सबका कर्तव्य है ,तभी हम आने वाली भयंकर त्रासदी से बच सकते हैं । हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए संविधान के धर्मनिरपेक्ष तथा जनतांत्रिक स्वरूप की रक्षा हरहाल में की जाऐ तभी हमारा देश बच पाऐगा ।जहाँ हम 1981 में सबको शिक्षा ,सबको मांग कर रहे थे , वहीं आज बचे खुचे रोजगार एवं शिक्षा को काम को बचाने के लिए लड़ने की आवश्यकता है ।