दल बदलू नेता चुनाव जीतने के बाद जनहित के काम करेंगे या अपने स्वार्थ की पूर्ति : शारिक जैदी।
नसीम अहमद स्योहारा,भारतीय लोकतंत्र का महापर्व, लोकसभा चुनाव, अपने 18वें संस्करण में प्रवेश कर चुका है। इस बार चुनाव सात चरणों में संपन्न होंगे, जिसमें प्रथम चरण का आगाज बिजनौर लोकसभा सीट से 19 अप्रैल को होगा। राजनीतिक दलों ने अपने योद्धाओं को चुनावी रण में उतार दिया है, और अब जनता के सामने उनकी नीतियों और वादों की परीक्षा होगी।
चुनावी मौसम में दलबदल की राजनीति भी अपने चरम पर होती है। कई नेता अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए दलों का परिवर्तन कर लेते हैं, जिससे जनता के मन में संशय की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ये दलबदलू नेता वास्तव में जनता के हितैषी हैं या केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति करेंगे?
इतिहास गवाह है कि जनता ने हमेशा उन नेताओं को सराहा है जो अपने क्षेत्र की समस्याओं को समझते हैं और उनके समाधान के लिए प्रयासरत रहते हैं। जनता की अपेक्षाएँ उन नेताओं से होती हैं जो न केवल चुनावी वादे करते हैं, बल्कि उन्हें पूरा भी करते हैं। दलबदल करने वाले नेता अक्सर जनता की नजरों में अविश्वसनीय हो जाते हैं, और उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है।
इस चुनावी सीजन में, जनता के सामने एक बड़ी चुनौती है – वह नेता चुनना जो वास्तव में उनके हितों की रक्षा करेगा और उनके क्षेत्र का विकास करेगा। जनता की जागरूकता और समझदारी ही तय करेगी कि आने वाले समय में उनके क्षेत्र का चेहरा कैसा होगा। अतः, यह जनता के हाथों में है कि वे ऐसे नेता को चुनें जो उनके विश्वास को सही मायने में समझे और उस पर खरा उतरे।
आइए, इस लोकतंत्र के पर्व को सजगता और समझदारी के साथ मनाएँ, और एक ऐसे भारत की नींव रखें जो न केवल आज के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी समृद्ध और सशक्त हो।