उत्तराखंडदेहरादून

मार्क्स, स्टीफन की पुण्यतिथि तथा आइस्टिन की जयंती : अनन्त आकाश।

देहरादून : “विश्व के महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स का निधन आज ही के दिन 1883 मे हुआ ,वैज्ञानिक समाजवाद के सिध्दांतकार,सर्वहारा एवं वर्गीय शोषण मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले महान दार्शनिक अर्थशास्त्री कार्ल मार्क्स ने दुनियाभर के मेहनतकशो ,शोषितों को नया रास्ता दिखाया । परिणामस्वरूप दुनिया का नक्शा बदल गया तथा शक्तियों का सन्तुलन मेहनतकशों पक्ष हुआ ,आज दुनियाभर मे मार्क्स एग्लेल्स के दिखाये रास्ते पर मेहनतकश एकजुट हो रहे हैं ,मार्क्स ,जैनी तथा एंग्लिस की मित्रता व उनके योगदान के लिये दुनिया हमेंशा उनकी ऋणि रहेगी ।

आज ही के दिन ब्रह्माण्ड के ज्ञाता सैन्ट स्टीफन की पुण्यतिथि है , उनका निधन 14 मार्च 2018 को हुआ । आज ही के दिन 1879 में ब्रह्माण्ड की गुत्थियां सुलझाने वाले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइस्टिन की जयंती है उनका जन्म 14 मार्च 1879 में हुआ , वे हिटलर के विचारों के कठ्ठर विरोधी तथा समाजवादी विचारों के समर्थक थे ।

शारीरिक विकलांगता के बावजूद ब्रह्माण्ड के रहस्य की खोज कर सेन्ट स्टीफन ने साबित किया है कि यदि इरादा पक्का हो तो शारीरिक विकलांगता का कोई मायना नहीं है , ऐसे ही इस दुनिया में असंख्य उदाहरण हैं ,जब आदमी सोचता है तो वह कर दिखाता है । स्टीफन हाकिंग शरीर से बिकलांग होने के बावजूद ब्रह्माण्ड के ज्ञाता थे । यह भी कहना उचित होगा कि जो लोग शरीर से ठीक ठाक हैं उन्हें निश्चित रूप से शारीरिक रूप से विकलांग हो,या आर्थिक रूप से गरीब या सामाजिक रूप से कमजोरों के प्रति सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए । जो लोग समाज के इस कमजोर हिस्से के प्रति सदभावना रखते हों,वे निश्चित रूप से समाज में बिशेष स्थान रखते हैं ।

स्टीफन कहते है कि मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के सामने खोले और इस पर किये गये शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।’’

“स्टीफन का जन्म 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफ़ोर्ड में फ्रेंक और इसाबेल हॉकिंग दंपत्ति के घर में हुआ था। इसे महज एक संयोग ही माना जा सकता है कि हॉकिंग का जन्म महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली के देहांत के ठीक तीन सौ वर्ष बाद हुआ था। आठ वर्ष की उम्र में जब स्टीफन विद्यालय जाने के योग्य हुए तो उनको प्राथमिक शिक्षा के लिए लड़कियों के एक स्कूल में दाखिला दिला दिया गया। 11 वर्ष की उम्र के बाद हॉकिंग ने सेंट मेलबर्न नामक स्कूल में अपनी आगे की पढ़ाई की। हॉकिंग को बचपन में उनके सहपाठी ‘आइंस्टाइन’ कहकर संबोधित करते थे। मगर आइंस्टाइन की ही तरह हॉकिंग भी बचपन में प्रतिभाशाली विद्यार्थी नहीं माने जाते थे।

मगर हाईस्कूल के अंतिम दो वर्षों में गणित और भौतिक विज्ञान के अध्ययन में उनकी रूचि बढ़ने लगी थी। उनके पिता चाहते थे कि स्टीफन आगे की पढ़ाई जीव विज्ञान विषय लेकर करें। मगर स्टीफन की जीव विज्ञान में रूचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी रूचि के विषय गणित और भौतिक विज्ञान की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसके बाद वे ‘ब्रह्मांड विज्ञान’ (कॉस्मोलॉजी) में उच्चस्तरीय अध्ययन के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गये।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान और गणित के प्रोफेसर रहे स्टीफन हॉकिंग को अल्बर्ट आइंस्टाइन के बाद विश्व सबसे का सबसे बड़ा भौतिकशास्त्री माना जाता था। अपनी अद्भुत जिजीविषा, अपूर्व इच्छाशक्ति और अदम्य साहस के बल पर शारीरिक विकलांगता की बाधाओं को पार करते हुए प्रोफेसर हॉकिंग ने सैद्धांतिक भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व खोजें कीं।

स्टीफन हॉकिंग अपने जीवनकाल में ही एक किंवदंती (आख्यान-पुरुष) बन गए थे। इसके कारणों को समझना ज्यादा कठिन नहीं है। पहला कारण तो यही है कि उन्होंने शारीरिक विकलांगता के बावजूद ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोधकार्य किए और कुछ क्रांतिकारी सिद्धांत प्रस्तावित किए। प्रत्येक विचारशील मनुष्य को ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विचार और सिद्धांत आकर्षित और प्रभावित करते रहें हैं, फिर चांहे वह व्यक्ति वैज्ञानिक हो, धर्माचार्य हो या आम मनुष्य।

हॉकिंग की बेतहाशा लोकप्रियता का दूसरा कारण उनकी लोकप्रिय पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम’ है। दरअसल, हॉकिंग का नाम उन विलक्षण वैज्ञानिकों में शुमार होता है, जिनका अनुसंधान भी पहले दर्जे का होता है और लेखन भी पहले दर्जे का! हॉकिंग का यह मानना था कि किसी भी वैज्ञानिक के शोधकार्यों की पहुंच सामान्य जनमानस तक होनी चाहिए।

इसी विचार से प्रेरित होकर उन्होंने जनसामान्य के लिए सरल-सहज भाषा में लेख और पुस्तकें लिखीं तथा सार्वजनिक व्याख्यान भी दियें। उपर्युक्त बातों के आलावा हॉकिंग की लोकप्रियता का एक प्रमुख कारण था – उनका विलक्षण व्यक्तित्व, उनकी विनम्रता और अपनी बातों को व्यक्त करने का उनका अनूठा अंदाज।

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