मुस्लिम-यादव’ गठजोड़ तक सिमटती सपा-कांग्रेस की उम्मीदें।
नई दिल्ली : भाजपा के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त एक उम्मीदवार उतारने की रणनीति बनाते हुए ही विपक्षी दलों ने आइएनडीआइए के गठन की ओर कदम बढ़ाया था, लेकिन सीटों के बंटवारे तक तस्वीर बहुत बदल गई।
उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस ने जैसे-तैसे सीटों पर समझौता तो कर लिया, लेकिन फिलहाल दोनों की साझा उम्मीदें उसी ”मुस्लिम-यादव” गठजोड़ तक सिमटती दिखाई दे रही है।
जिस पर सपा की राजनीति टिकी रही और इसकी असफलता को देखते हुए ही सपा मुखिया अखिलेश यादव पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) की बात मुखरता से करने लगे हैं।
अखिलेश की ”दलित” के प्रति हसरत तो है, लेकिन हकीकत का आईना 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम दिखाते हैं, जब मायावती की पुकार पर हाथी पर सवार होकर भी सपा के करीब आने से दलित मतदाता हिचक गए।
भाजपा के चुनाव अभियान का चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जो कि किसान, महिला, युवा और गरीब को सबसे बड़ी जाति बता रहे हैं। पार्टी की चुनावी रणनीति भी उसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है।