देहरादून : मोहनदास करमचंद गांधी भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और नेताओं में एक प्रमुख स्थान रखते है, गांधी ने दुनियाभर में अपनी मौजूदगी दर्ज करायी है, उनके अधिकांश विचार प्रेणादायक थे और उनकी प्रासंगिकता आज भी कायम है ।
गांधी का दृढ मत था कि मेरे साथ रहने वालों को फर्श पर सोना होगा, साधारण कपडे पहनने होंगे, सुबह उठना होगा, साधारण खाने पर जिन्दा रहना होगा और अपना टॉयलेट खुद साफ करना होगा, बापू के इस सादगी से आज भी जनमानस प्रभावित है, बापू का मानना था कि हमारा प्रत्येक क्षण मानव सेवा में लगाना चाहिए ।
गांधी की प्रासंगिक इसलिये भी उन्होंने अहिंसा, सविनय अविज्ञा, सत्याग्रह और असहयोग. भूख हड़ताल, करो या मरो उनके द्वारा विकसित हथियार हैं ।
गांधी को “महात्मा” की उपाधि नोबेल पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोरजी ने दी थी और उन्हे महान आत्मा कहा था । गांधी की देन अनेकों हैं , वे खुले खेतों में शौच की जगह शौचालय के पक्षधर थे ।स्वास्थ्य, सफाई ,शिक्षा ,हिंदु मुस्लिम एकता प्रबल समर्थक थे । चर्चिल ने गांधी जी को आधा नंगा फकीर कहा था , गांधी और उनके विचारों का कड़ा विरोध किया था ।
बापू अपने जीवन में कुल 2338 दिन विभिन्न जेलों में रहे ,इसमें 249 दिन दक्षिणीअफ्रीका में और 2089 दिन भारत की जेलों में रहे, उन्होंने कहा कि अपने प्यार का मल्हम भारत के घावों पर लगाओ, आन्दोलनों के दौरान ही बापू ने 6 हफ्तों तक मौन व्रत धारण भी किया ।
लार्ड माउंटबैटन ने गांधीजी के बारे में कहा था कि हमने उसे जेल भेजा और उसका अपमान किया, उससे नफरत की तथा उसे हिकारत की नजरों से देखा और उसे अनदेखा किया, मगर गांधी तो गांधी ही थे, वे अपने आदर्शों से कभी विचलित नही हुऐ ।
गांधी का मानना था कि जरूरी चीजों और जरूरतों का न्यायपूर्ण वितरण होना चाहिए।उन्होंने कहा सामाजिक और आर्थिक असमानता नफ़रत और हिंसा की जनक है । उन्होंने अपने राजनैतिक शिष्यों को कहा कि सत्ता से सावधान रहो, सत्ता भ्रष्ट कर देती है, याद रहे कि तुम गांव के गरीबों की सेवा करने के लिए सत्ता में हो ।
गांधी ने अपने जीवन में 16 बार भूख हडतालें की वे हिंदु मुस्लिम एकता के सच्चे समर्थक थे । वे भाईचारे और मोहब्बत के प्रतीक थे ।उनका मानना था कि हिंसा और नफरत किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती , हम सभी हिंदू मुस्लिम सिख इसाई भारत माता के बेटे ,बेटियां हैं ।
बापू स्त्री समानता के सबसे बड़े पैरोकार थे , उनका कहना था कि जब तक मानवता का 50 प्रतिशत हिस्सा यानि औरतें आजाद नही होतीं, तब तक भारत आजाद नही हो सकता, वे मानते थे कि बिना श्रम की रोटी चोरी की रोटी है, सत्य, अहिंसा ,सदाचार ,प्रेम और भाईचारा उनके सिध्दांत के अभिन्न हिस्से थे, उनका कहना था कि हम अलग -अलग रहने के बावजूद एक बृक्ष के ही पत्ते हैं ।
गांधी हमारे देश के बहुत बडे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे । 30 जनवरी 1948 को सायं 5 बजकर 17 मिनट पर एक हत्यारे साम्प्रदायिक नाथूराम गोडसे ने प्रार्थना के लिए जाते निहत्थे शांतिदूत और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी यानि बापू यानि रास्ट्रपिता की बेदर्दी से हत्या कर डाली कहा जाता है कि गोडसे ने गांधी की हत्या सावरकर के योजना के अनुसार की थी ।
गांधी एक ऐसे भारत के ख्वाब देखते थे कि जहां कोई गरीब न हो, कोई अमीर न हो, सब तरह की हिंसा का खात्मा हो, सब जगह आजादी की बयार बहे,सबको रोटी .कपडा .मकान .शिक्षा .स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाये, प्राकृतिक संसाधनों पर सबका अधिकार हो और इनका प्रयोग सबके विकास और समृद्धि के लिए किया जाये ।
भारतीयता और हिंदुस्तानियत बापू के अंदर कूट – कूट कर भरी हुई थी, वे कहते थे कि “आजाद भारत में हिंदुओं का नही हिंदुस्तानियों का राज्य होगा , हिंदू मुस्लिम एकता से ही सच्चा स्वराज्य आयेगा. हम हिंदू मुस्लिम नही भारतीय यानि हिंदुस्तानी हैं । मैं अपने खून की कीमत पर भी हिंदू मुस्लिम एकता की रक्षा करूंगा. मैं हिंदू नहीं बल्कि हिंदुस्तानी हूँ ।”
सच तो यह है कि गांधी के सपनों का हिंदुस्तान नही है. यहां जातिवाद साम्प्रदायिकता छल कपट और झूठ, भाई भतीजावाद, बेईमानी, भ्रष्टाचार,खुदगर्जी ,शोषण, अन्याय, भेदभाव और गैरबराबरी, व धर्मांन्धताओं की विकृतियां उग आयी हैं और हम इनके गुलाम हो गये हैं, और आज फिर से जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली मानसिकता सिर उठा रही है ।आदमी के बीच दूरियां बढी हैं ।सही मायनों यह गांधी के स्वप्नों का देश नहीं बन पाया ।
गांधी राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करने के विरोधी थे, वे स्वयं में धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे, मगर वे कहीं से भी साम्प्रदायिक नही थे बल्कि वे साम्प्रदायिकता के सबसे बड़े दुश्मन थे ।
गांधी एक महान आत्मा थे. उनकी कथनी और करनी में बहुत फ़र्क नही था, जो कहते वही करते थे. उन्होंने अपने व्यक्तित्व से देश और दुनिया के करोडों लोगों को प्रभावित किया था । वे एक अमर व्यक्तित्व के मालिक आज भी जनमानस के मनोमतिष्क में हैं ।
वर्तमान समय में केन्द्रीय सत्ता के राजनैतिक विचार, गांधी की विचारधारा पर हमलावर हैं और उनकी प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। प्रत्यक्ष ,प्रत्यक्ष रूप से उनके द्वारा गांधीजी को गालियां देना आम बात हैं वे गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामण्डित करना उनकी राजनीति का हिस्सा रहा है। आज गांधी के सर्व समावेशी चिन्तन पर निरन्तर हमला जारी है। ये हमलावर हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक लोग हैं और वे भारत के संविधान, जनतंत्र, गणतंत्र, आजादी और अल्पसंख्यकों पर हमले कर रहे हैं। इनके हमलावर तेवरों से हमारे देश की एकता अखण्डता को गंभीर खतरे में है ।
ऐसे में हमें गांधी की विचारधारा को बचाना है जनता के सामने उनकी प्रासंगिकता को स्पष्ट करना है, साबित करना है और जनता जनता को बताना होगा कि इस देश की रक्षा, इस देश के किसानों नौजवानों महिलाओं आजादी गणतंत्र जनतंत्र संविधान धर्मनिरपेक्ष की रक्षा, गांधी की विचारधारा और उनके मूल्यों से की जा सकती है गोडसे और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिकता के विचारों से नही।
ऐसे में धर्मनिरपेक्षता एवं जनतंत्र पर आस्था रखने वाले राजनैतिज्ञों ,लेखकों गायकों, कवियों, कहानीकारों निबंधकारों, साहित्यकारों, मीडियाकर्मियों और सांस्कृतिकर्मियों का दायित्व और बढ़ जाता है। उन्हें गांधी के विचारों की प्रासंगिकता को बचाव के अभियान में अग्रणी भूमिका निभानी पड़ेगी और देश के शत्रुओं का करारा जवाब देना पड़ेगा देश के विमर्श को जनवादी धर्मनिरपेक्ष ,जनतांत्रिक, समाजवादी, बहुलतावादी और सर्व समावेशी बनाना पड़ेगा।