देहरादून : विश्व में भाषाओं की रैंकिंग एथ्नोलोग नाम की प्रतिष्ठित संस्था करती है, यह अमेरिकी संस्था है, एथ्नोलोग हिन्दी को तीसरे स्थान पर दिखाता है, जबकि हिन्दी विश्व में पहले स्थान पर थी और आज भी है, लेकिन उसे निरंतर तीसरे स्थान पर दिखाया जाता रहा है, किसी भी विद्वान ने इस पर आपत्ति नहीं की, यद्यपि मेरे शोध के उपरांत भारत के तथा विश्व के भाषाविद अब हिन्दी को पहले स्थान पर मानने लगे हैं, लेकिन एथ्नोलोग इसे आज भी तीसरे स्थान पर दिखा रहा है, यह विसंगति अब तक चलती आ रही है, न तो भारत सरकार की हिन्दी के हित में बनी किसी संस्था ने और न ही भाषाविदों की ओर से इस पर कोई आपत्ति दर्ज की गई इसलिए यह गलत आंकड़ा आज भी चल रहा है, मैंने सबसे पहले इस संबंध में सन 2005 में अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी तथा अपनी शोध की प्रति भेजते हुए एथ्नोलोग से अनुरोध किया था कि हिन्दी बोलनेवालों कि सही संख्या का उल्लेख करते हुए हिन्दी को पहले स्थान पर दर्शाएँ ।
चूंकि उस समय 15 वें संस्करण के प्रकाशन का कार्य पूरा हो चुका था इसलिए एथ्नोलोग के तत्कालीन संपादक पॉल लेविस ने आश्वासन दिया था कि वे मेरे द्वारा सुझाए संशोधन को अपने 16वें संस्करण में प्रकाशित करेंगे, परंतु कुछ समय बाद एथ्नोलोग ने मुझसे कहा कि मुझे उर्दू भाषा को हिन्दी भाषा में मर्ज ( विलीन) करने हेतु आइ एस ओ मे बदलाव की प्रक्रिया पूर्ण करनी होगी ।
अतः उन्होने मुझसे लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस से संपर्क करने का सुझाव दिया , इस पर मैंने उन्हें बताया कि मेरा उद्देश्य उर्दू को हिन्दी में विलीन करना नहीं है बल्कि मैं चाहता हूँ कि उर्दू भाषा के जानकारों को हिन्दी जानकारों में शामिल किया जाय जैसा कि चीनी भाषा और अँग्रेजी भाषा के बोलने वालों की गणना में एथ्नोलोग द्वारा किया जाता है ।
एथ्नोलोग द्वारा हिन्दी को प्रथम स्थान पर दर्शाये जाने कि अद्यतन स्थिति :
मैंने एथ्नोलोग को सूचित किया कि मैं गत 41 वर्ष इस शोध को जारी रखे हुए हूँ और हर दो साल में इसका नवीनतम संशोधित संस्करण विश्व हिन्दी दिवस (10 जनवरी )को प्रकाशित करता आ रहा हूँ । जिस प्रकार एथ्नोलोग हर वर्ष अपनी रिपोर्ट को संशोधित करता है तथा अद्यतन रिपोर्ट हर वर्ष प्रकाशित करता है , उसी प्रकार मैं भी अपनी संशोधित रिपोर्ट हर दो वर्ष में जारी करता आ रहा हूँ, एथ्नोलोग का यह 25 वां संस्करण है और मेरी शोध का यह उन्नीसवाँ संस्करण है जिसमें वर्ष 2022 तक के आंकड़ों को समाहित करते अद्यतन किया गया है । यह रिपोर्ट “ शोध रिपोर्ट 2023 “ के नाम से जारी की गई है।
मेरी शोध रिपोर्ट का अट्ठारहवां संस्करण अर्थात 2021 की शोध रिपोर्ट एथ्नोलोग के पास विचाराधीन है । एथ्नोलोग के प्रतिनिधि सुश्री रोना एवं श्री रोब इस मामले में समन्वय कर रहे हैं तथा संपादकीय टीम के निर्णय के बाद एथ्नोलोग अपने आंकड़ों में संशोधन करके हिन्दी को पहले स्थान पर दर्शाएगा ।
प्रामाणिकता संबंधी विविध चरण :
मेरी इस शोध की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए इसका 20 चरणों में परीक्षण किया गया जिसमे इस शोध पर विश्व विद्यालयों में विद्वानों द्वारा विचार विमर्श , विशिष्ट संगोष्ठियों में परीक्षण, भाषा प्राधिकारियों द्वारा परीक्षण , भाषाविदों व हिन्दी के विद्वानों के विचार/ अभिमत आमंत्रित करके शोध की सत्यता का पता लगाया गया । इन सभी चरणों में यह शोध प्रामाणिक सिद्ध हुई है । इसी आधार पर , वित्त मंत्रालय , भारत सरकार ने सभी बैंकों , बीमा कंपनियों एवं वित्तीय संस्थाओं को सरकारी निर्देश दिये थे कि सभी हिन्दी कार्यशालाओं में इस शोध को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाय व साथ ही गृह पत्रिकाओं के इसे प्रकाशित किया जाये ।
भारत सरकार राजभाषा विभाग , गृह मंत्रालय ने इस शोध की प्रामाणिकता की जांच के लिए ( FACT CHECK ) हेतु इसे केन्द्रीय हिन्दी संस्थान , आगरा ( शिक्षा मंत्रालय , भारत सरकार ) को भेजा गया था। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने इस कार्य हेतु विशेषज्ञ नियुक्त किया , विशेषज्ञ नें इस शोध को प्रामाणिक माना तथा प्रबल रूप से संपुष्टि करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की । भारत सहित विश्व के 172 शीर्ष भाषाविदों ने इस शोध का समर्थन किया है । इस शोध ने अपनी प्रामाणिकता के 20 चरण सफलता पूर्वक पूरे कर लिए हैं । अतः निर्विवाद रूप में यह प्रामाणिक रिपोर्ट है ।
हिन्दी की संख्या को कम आँकने में गलती कहाँ हुई और सुधार कैसे होगा ?
अब हम यहाँ हिन्दी को कम आँकने में हुई गलतियों पर चर्चा करेंगे और इसमे सुधार कैस हो इस पर भी प्रकाश डालेंगे । विश्व में हिन्दी की संख्या की गणना में पाँच प्रकार की गलतियाँ हुई हैं , जो इस प्रकार हैं :
1. हिन्दी भाषा और मानक हिन्दी भाषा में भ्रम पैदा करके मानक हिन्दी को ही हिन्दी माना है ।
2. हिन्दी भाषा की गणना में हिन्दी की बोलियों को अलग दर्शाया है ।
3. भारत में तथा विश्व में हिन्दी बोलने वालों की सही संख्या नहीं दी गई
4. उर्दू भाषा को अलग भाषा मानते हुए उर्दू भाषियों को हिन्दी जानकारों में नहीं गिना गया ।
5. एथ्नोलोग के मानदंडों के आधार पर हिन्दी भाषियों की गणना नहीं की गई ।