उत्तराखंडदेहरादून

नया साल लाया किसानों के लिए नई सौगात।

ऊंची खेती ऊंची आय : डा जयंती प्रसाद नौटियाल।

देहरादून : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दुगनी करने का जो संकल्प लिया था उससे प्रेरित होकर मैंने सोचा कि एक नागरिक के रूप में, मैं किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए क्या योगदान दे सकता हूँ, इस मद पर गंभीर चिंतन के उपरांत मैंने किसानों की आय में कई गुना वृद्धि करने हेतु एक नवीनतम संकल्पना का विकास किया ।

इस संकल्पना को मैंने “ ऊंची खेती ऊंची आय ” नाम दिया, यह यह शोध आलेख इसी से संबन्धित है, चूंकि यह मामला किसानों की आय में वृद्धि करने से जुड़ा है, इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है, इस शोध आलेख मे दी गए फसलें यदि मुख्य खेती की जगह में लगाई जाएँ तो लाभ अधिक होगा, यदि मुख्य खेतों में न लगा कर खेतों की मेढ़ों पर या कोने में अथवा मुख्य फसल से बची खुची जमीन पर भी लगाई जाये तब भी किसानों की आय में कई गुना वृद्धि होगी।

नए साल में किसानों के लिए यह किसी सौगात से कम नहीं, इसलिए इस लेख को अवश्य पढ़ें और इन प्रजातियों को अपने खेतों में भी लगाएँ और सभी को इस प्रकार की ऊंची खेती ऊंची आय संकल्पना के बारे में बताएं । ये प्रजातियाँ ऐसी हैं जो आप अपने घरों में गमलों में या आँगन में या छत पर भी उगाई जा सकती हैं।

“ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना क्या है ?

वास्तव में आज कृषि भूमि में निरंतर कमी आ रही है, इसलिए हमें ऐसी फसलें उगानी होंगी जिनकी ऊंचाई बढ़ाकर कम से कम खेती योग्य स्थान से अधिक से अधिक उपज प्राप्त की जा सके, उदाहरण के लिए जिस प्रकार आवास हेतु भूमि कम पड़ने के कारण भवनों की ऊंचाई बढ़ने लगी और बहुमंजिला इमारतें प्रचलन में आई, आज शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे छोटे कस्बों में भी अपार्टमेंट बनने लगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कम से कम स्थान पर रह सकें, इसी दृष्टांत को ध्यान में रख कर मैंने “ ऊंची खेती ऊंची आय ” संकल्पना के तहत नमूने के तौर पर भिंडी की नई किस्म विकसित करने पर काम करना शुरू किया।

1. “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित पहली प्रजाति “ महा भिण्डी ” (Abelmoschus Esculentus .i.e Okra ) :

2. मैंने तीन साल के अथक परिश्रम से भिंडी की ऐसी प्रजाति विकसित की जिसमे भिंडी का पौधा 13 फुट से 15 फुट तक ऊंचा होता है जबकि सामान्य तौर पर भिंडी का पौधा 4 से 5 फुट ऊंचा होता है । इसलिए मैंने इस प्रजाति का नाम “ महा भिंडी ” रखा । चित्र 1 से 4 देखें देखें ।

3. सामान्य भिंडी के पौधे से इसके पूरे जीवन काल में अधिकतम डेढ़ से 2 किलो भिंडी प्राप्त की जा सकती हैं लेकिन मेरे द्वारा विकसित “महा भिंडी” से 7 से 8 किलो भिंडी एक ही पौधे से प्राप्त की जा सकती हैं । इस प्रकार इस प्रजाति से किसानों की आय में चार से पाँच गुना वृद्धि हो जाती है और कृषि भूमि का अधिकतम उपयोग होता है ।

4. मैंने इस “महा भिंडी” के बीज किसानो के कल्याण की भावना से पंत नगर विश्व विद्यालय को भेजे ताकि वे इसे विकसित करके इसके बीज सम्पूर्ण भारत में वितरित करें तथा सभी जगह यह महा भिंडी प्रजाति उगाई जा सके और किसानों की आय में 4 से 5 गुना वृद्धि हो सके ।

इस “महा भिंडी” के बीज मैंने अपने उद्यान से प्रोफेसर बी के सिंह जी के सामने ही भिंडी के पौधों में लगी सूखी भिंडियाँ बीज सहित एक पैकेट में भर कर , पंत नगर विश्व विद्यालय के प्रोफेसर बी के सिंह  को देहरादून में दिये,  बी के सिंह ने ये बीज वेजीटेबल विभाग के प्रमुख धीरेंद्र कुमार सिंह को दे सौंप दिये । चित्र 4 से 6 देखें ।

सम्पूर्ण भारत में इस प्रजाति को उगाने की स्थिति :

मैंने जब धीरेंद्र सिंह से इन बीजों को विकसित करने और इनके सम्पूर्ण भारत में वितरण की प्रगति के बारे में पूछा तो उन्होने कहा कि “ हमने इन बीजों को अपने यहाँ उगाया और इनके परिणाम बहुत ही उत्साहवर्धक रहे । इन परिणामों के आधार पर ही मैंने ( धीरेन्द्र कुमार सिंह  ने ) इन बीजों को ए आई सी आर पी ( A I C R P ) मेटीरियल घोषित किया और आल इंडिया कोओरडीनेटर रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए सम्पूर्ण भारत में बीज भेज दिये ।

इस संबंध में मैंने गोबिन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय से रिपोर्ट मांगी है । उनसे रिपोर्ट मिल जाने पर इस संबंध में विस्तार से जानकारी अपने किसान भाइयों के साथ साझा करूंगा ।

महाभिण्डी से संबन्धित तकनीकी विवरण :

महाभिण्डी से संबन्धित तकनीकी जानकारी इस प्रकार है । यह पौधा 15 फुट ऊंचाई तक उगता है तथा हर पौधे मेन 4 से 5 शाखाएँ निकलती हैं । हर शाखा पर 12 से 15 महा भिंडियाँ उगती हैं भिंडियों का आकार 9 से 10 इंच होता है तथा मोटाई 8 से 9 सेंटीमीटर होती है । इस प्रकार एक पौधे से लगभग 150 महा भिंडियाँ उगाई जाती हैं । एक पौधे से उपज का समग्र वजन 7 से 8 किलोग्राम होता है जबकि सामान्य प्रजाति की भिंडी से एक पौधे से अधिकतम 1 से 2 किलोग्राम भिंडी उगाई जा सकती है ।

2. “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित दूसरी प्रजाति “ महा टमाटर ” ( Lycopersicon lycopersicum. इसे Lycopersicon esculentum नाम से भी जाना जाता है ):

महा भिण्डी परियोजना सफल हो जाने के बाद मैंने टमाटर की नई प्रजाति विकसित करने की परियोजना शुरू की । इस परियोजना में भी मेरे एक ही लक्ष्य था की कम से कम जगह से ऊंचे पौधे उगा कर अधिक से अधिक आय कैसे प्राप्त की जाय । इसी उद्देश्य को लेकर मैंने नई टमाटर की प्रजाति विकसित करने हेतु प्रयोग शुरू कर दिये । 3 साल के परीक्षण के उपरांत महा टमाटर की प्रजाति को अंतिम रूप दिया गया ।

मुझे इस पौधे के सत्यापन की आवश्यकता थी इसलिए मैंने देहारादून की मुख्य उद्यान अधिकारी आदरणीय मीनक्षी जोशी जी से संपर्क किया । उन्होने मेरे प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि किसानों के आय मेन बढ़ोतरी के ये प्रयास सरहनीय हैं । उन्होने अपने पत्रांक संख्या 2363/विविध/2023-24 / दिनांकित 22-11-2023 द्वारा इस पौधे के सत्यापन के लिए टीम गठित की जिसमे 1.  चंद्र सिंह पंखोली, ज्येष्ठ उद्यान निरीक्षक , रायपुर, 2.  निधि थपलियाल , प्रभारी उ . स . द . के . देहरादून, तथा 3. डॉ अंकित टमटा टीम के सदस्य थे।

इस टीम ने 29 , नवम्बर 2023 को इस नई प्रजाति के पौधे का निरीक्षण और सत्यापन किया । उस समय इस टमाटर के पौधे की ऊंचाई लगभग 10 फुट थी और यह तब तक 36 टमाटर की उपज दे चुका था । इसकी जड़ से छह इंच ऊपर से शाखाएँ उगी थी जो पुष्पित थी और फल देने के लिए तैयार थी । इस पौधे के शीर्ष पर गुच्छों मे 5 टमाटर उगे थे । आज दिनांक 29 दिसंबर 2023 को इस पौधे की ऊंचाई लगभग 12 फुट पहुँच चुकी है और अब तक इसमे 53 टमाटर उग चुके हैं 4 टमाटर पकनेवाले हैं और नीचे छह इंच की दूरी पर पुनः टमाटर लगने आरंभ हो चुके हैं ।

इस पौधे का पहला पौधा 4-6-2021 को उगाया गया था । इसे विकसित करके तीसरे वर्ष का यह वर्तमान पौधा जून 2023 को उगाया गया और तीन महीने बाद इसने फल देने शुरू कर दिये थे और आज तक फल दे रहा है । कुल उपज कितनी होगी यह तो तब निर्धारित होगा जब यह पौधा फल देने बंद कर देगा या पूरी तरह सूख जाएगा ।

किसानों की आय वृद्धि का यह दूसरा चरण पूरा हुआ इसके बीज अब तैयार हैं । इन बीजों को भी मैं किसानों की भलाई के लिए किसी विश्वविद्यालय या कृषि संस्थान या किसानों के कल्याण मे लगी संस्था / संगठन को देना चाहता हूँ ताकि यह पूरे देश मेन उगाया जा सके और किसानों की आय में कई गुना वृद्धि हो सके साथ ही कम से कम कृषि योग्य भूमि में किसान अधिक से अधिक आय पा सकें ।

3. “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित तीसरी प्रजाति “ महा केना ” ( Canna indica, इसे सामान्यतः Indian shot भी कहा जाता है ) :

उद्यान विभाग , उत्तराखण्ड सरकार की टीम ने केना नामक फूल के पौधे का भी निरीक्षण तथा सत्यापन किया। सामान्यतः यह पौधा 4 से 5 फुट ऊंचा होता है परंतु मेरे द्वारा विशेष विधि से उगाया यह पौधा भी लगभग 12 फुट ऊंचा हो गया था , इसमे लाल फूलों के बड़े- बड़े गुच्छे लगे थे , पत्तों की चौड़ाई भी लगभग दो फुट थी । ( सही नाप उद्यान विभाग की टीम के पास उपलब्ध )। चूंकि यह पौधा मैं नर्सरी से लाया था इसलिए उद्यान विभाग की टीम ने मुझे बताया कि यह प्रजाति किसी और द्वारा विकसित कि गई होगी इसलिए इसे मेरे नामपर नहीं गिना जा सकता है ।

लेकिन उन्होने कहा कि आपने इस छोटे से पौधे को पाल पोष कर इनता विशाल पौधा बनाया है , इसके पालन पोषण का श्रेय आपको मिलना ही चाहिए। उन्होने पौधे के सौंदर्य और इसकी विशालता सराहना की । निरीक्षण के उपरांत इसकी ऊंचाई और भी बढ़ गई । अब यह पौधा लगभग 14 फुट का है ।

भले ही यह पौधा मेरे द्वारा विकसित प्रजाति नहीं है परंतु मैंने इसे पाल – पोष कर अपनी विधि का उपयोग करते हुए यह तो सिद्ध कर ही दिया की खेती में ऊंचे पौधे उगा कर हम कम से कम भूमि में अधिक से अधिक आय ले सकते हैं ।

4 “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित चौथी प्रजाति “ गुडमार ” ( Gymnema Sylvestre ) :

उक्त संकल्पना के अंतर्गत मैंने दो प्रजातियाँ सब्जी की ( अर्थात महा भिंडी और महा टमाटर ) विकसित की , एक प्रजाति फूलों की ली तथा दो प्रजातियाँ औषधीय पादपों ( Aromatic Plants ) की विकसित की । यह चौथी प्रजाति गुडमार की विकसित की । इसे संस्कृत में मधुनाशिनी कहा जाता है । डाईबिटीज अर्थात मधुमेह के लिए यह रामबाण औषधि है । सुबह एक पत्ता खाली पेट चबा लें और एक गिलास पानी पी लें तो पूरे दिन मधुमेह नियंत्रित रहेगा और धीरे धीरे समूल भी नष्ट हो जाता है । लोग पूरे जीवन भर लाखों करोड़ों रुपए की दवाई खाकर अनेक साइड़ इफैक्ट का खतरा लेकर जीते हैं ।

इस गुडमार के एक ही पत्ते से आप सुखद जीवन जी सकते हैं । इसलिए मैंने इस पादप को अपने ऊंची खेती ऊंची आय परियोजना के तहत चुना । यदि किसान एक पत्ते की कीमत एक रुपए भी लें तो मालामाल हो सकते हैं । सामान्य रूप से यह गुडमार का पौधा एक से दो फुट ऊंचाई का होता है । मेरे द्वारा विकसित यह गुडमार का पौधा 15 फुट ऊंचा है । इसमे अब फूल और बीज आने का समय हो गया है । इसके बीज भी मैं किसानों की भलाई के लिए और उनकी आय में वृद्धि के लिए किसानों को देना चाहता हूँ । इसके बीज वितरण से पहले इसका सत्यापन और निरीक्षण अभी बाकी है ।

मैं इस संबंध में उत्तराखंड सरकार के औषधीय पादप केंद्र से संपर्क कर रहा हूँ ताकि वितरण से पूर्व इसका सही प्रमाणन हो सके तथा ये बीज सही ढंग से किसानों के पास पहुँच जाएँ । यह पौधा सीधी ऊंचाई पर पहुँचकर छतनार हो जाता है जिसमे पत्ते , पुष्प और बीज भरपूर मातत्रा में होते हैं । इनकी बिक्री से किसानों की आय कई गुना बढ़ जाएगी ।

5. “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित पाँचवीं प्रजाति “ महा मंदार ” ( Calotropis Gigantea ) :

इस औषधीय पादप के कई नाम हैं जैसे , मंदार । मदार , ओक , आक, अर्क, दर्द मार , अकंदा आदि । यह एक ऐसा आध्यात्मिक पौधा है जिसके जड़ में आपको गणेश जी मूर्ति बनी हुई मिलती है । अर्थात इसकी जड़ गणेश जी की सूंड और गजमुख के समान होती है । इसके फूल शिव जी पर चढ़ाये जाते हैं। भगवान शिव को यह बहुत प्रिय है । यह औषधीय पादप बहुत सी बीमारियों कि रामबाण दवा है । इसे आप चाहें तो दर्द निवारक के रूप में उपयोग में ला सकते हैं अथवा पेट के रोगों के इलाज में भी यह गुणकारी औषध है। पाचन, दाँत दर्द , घुटनो के दर्द, पैरों के मुड़ने, या क्रेम्प , बुखार, हाथी पाँव , बाइ का दर्द , कैंसर , सांप के जहर का उपचार जैसे अनेक रोगों में यह गुणकारी है लेकिन योगी वैद्य के निर्देशन में ही इसे लें क्योंकि इसे विषैला पौधा भी कहा जाता है , इसमे विष की मात्रा भी होती है ।

घर के सामने लगाने पर घर में सुख ,समृद्धि, संपन्नता , उल्लाष की प्राप्ति होती है तथा यह देव पादप होने के कारण नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करके सकारात्मक ऊर्जा को चारों ओर फैलाता है । यह भगवान शिव और गणपति को प्रिय होने के कारण आपके सभी विघ्न और बाधाओं को दूर करता है । मैंने इस पादप को अपनी परियोजना के तहत चुना । इसके बीज कपास के रेशे जैसे कोमल रेशों से ढके होते हैं , इन रेशों किसान भाई का कई रूपों में उपयोग कर सकते हैं ।

मंदार के पौधे की लंबाई भी सामान्यतः अधिकतम 1 2 फुट से 13 फुट होती है , लेकिन मेरे द्वारा विकसित महा मंदार प्रजाति का पौधा 14 फुट से 16 फुट ऊंचाई तक पहुंचता है । मेरी संकल्पना ही है की खेती को क्षैतिज ( horizontal ) रूप में करने की अपेक्षा ऊर्ध्वाकार रूप ( Vertical ) रूप में करें । इससे कम से कम जगह पर ज्यादा से ज्यादा उपज उपज ली जा सकती है । इसके बीज भी तैयार हैं और ये भी किसानों को वितरित किए जाने के लिए तैयार हैं । औषधीय पादप केंद्र से सत्यापन के बाद ये बीज वितरित किए जाएँगे ।

6. “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित छठवीं प्रजाति “ महा नींबू घास ” ( Cymbopogon Flexuosus ) :

किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए महा नींबू घास बहुत ही उपयोगी और आय में वृद्धि करने का सबसे आसान खेती है । इसे अँग्रेजी में लेमन ग्रास कहा जाता है । नींबू घास सामान्यतः 3 से 4 फुट का घास जैसा पौधा होता है । परंतु मेरे द्वारा विकसित यह महा नींबू घास 5 से 6 फुट तक ऊंचा होता है । यह औषधियों में महा औषध का काम करती है । इसे चाय के रूप में उबाल कर पीने से आरजी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है । यह घास कई रोगों के इलाज में बहुत ही प्रभावकारी है ।

इससे बुखार , पेट दर्द, ऐंठन , मुह के अंदर फंगल इन्फेक्शन , उच्च रक्तचाप, उल्टी खांसी ,जोड़ों का दर्द, तनाव और अवसाद ( डिप्रेशन ), कोलेस्ट्रॉल को कम करने, लाल रक्त कण बढ़ाने , वजन कम करने , खून साफ करने जैसे कई रोगों के उपचार के लिए काम में लाया जाता है । यह अनेक खनिजों से भरपूर और कैंसर से बचाने वाला होता है । यह बुवाई से 6 महीने के अंदर ही काटा जा सकता है ,इसमे सतह पर कई लंबी पत्तियाँ ( तने = लंबी घास के रूप में ) निकल आते हैं । इन तनों को उखाड़ कर अलग अलग करके धान की तरह रोपाई करके इसे जहां चाहें वहाँ रोप सकते हैं। यह जितनी ऊंची होगी उतनी ही लाभप्रद है । लंबी घास के एक ही पत्ते से दो कप चाय बन सकती है ।

इस तरह यह लाभ की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी होती है । इसकी घास को होटेलों में बेच कर काफी लाभ कमाया जा सकता है । घर में भी उपयोग में ला सकते हैं । पानी में उबलते ही इसके उबलने से पानी का रंग हल्का भूरा हो जाता है और बहुत तेज नीबू चाय की सी खुशबू चारों ओर फ़ेल जाती है जो चाय का स्वाद ( जायका ) बहुत बढ़ा देती है । यह महा नीबू घस्स भी मेरे पास वितरण के लिए उपलब्ध है । मैं यह भी किसानों को देना चाहता हूँ ताकि किसान खुशहाल हों ।

7. “ऊंची खेती ऊंची आय” संकल्पना के अंतर्गत विकसित सातवीं प्रजाति “ महा लुकाट ” ( Eriobotrya japonica ) :

लुकाट एक प्रकार का फल होता है जो मूलतः चीन का फल माना जाता है । यह कई नामों से जाना जाता है जैसे बिवा , लोकाट , लोक्वाट आदि । यह भारत में पहले प्रचुर मात्र में मिलता था लेकिन अब यह लगभग लुप्त प्राय सा हो गया है । नई पीढ़ी ने तो इसका नाम भी नहीं सुना होगा खाने या इसके स्वाद की तो हमारी नई पीढ़ी को जानकारी ही नहीं । इस फल को सजावटी पेड़ के रूप में भी लगाया जाता था और फलदार वृक्ष के रूप में भी । यह वृक्ष आसानी से उगाया जा सकता है । सामान्यतः या पेड़ 12-14 फुट ऊंचा होता है लेकिन अनुकूल वातावर्ण में यह 30 से 35 फुट तक लंबा हो सकता है । यह वृक्ष वसंत ऋतु के बाद और ग्रीष्म ऋतु से पहले फल देता है । देहरादून जैसे शहर मौसम में फल सभी तरह के फल जैसे आम ,अमरूद, सेव , पपीता , संतरा आदि 40 से 50 रूपी किलो बिकते हैं परंतु लुकाट का फल 400 रुपये किलो तक बिकता है ।

इसका मूल कारण यह है कि इसके गिने चुने पेड़ ही बचे हैं । इस पेड़ के कई औषधीय उपयोग भी हैं । यह उल्टी, डायरिया , अवसाद जैसे रोगो के उपचार के लिए उपयोगी होता है । इसके फूलों से सुगंध आती है । यह वातावरण को सुगंधित करने मेन बहुत सहायक होता है । इसलिए मैंने इस प्रजाति को भी वीसैट करने का संकल्प लिया और यह अभी विकास के दूसरे चरण में है । इसके बीज भी किसानों के लिए उपलब्ध रहेंगे ।

सभी फसलों के लिए यह संकल्पना लागू होनी चाहिए :

कि सानों की कृषि योगी भूमि में निरंतर हो रही कमी को देखते हुए आज जरूरत इस बात की है की सभी फसलों की ऊंचाई बढ़ा कर उत्पादन में वृद्धि की जाये । मैंने पहले स्वयं इस परियोजना को अपनाया है और इसके सफल होने के बाद ही इसको आगे बढ़ाया है । यह संकल्पना किसी भी फसल के लिए लागू की जा सकती है। हमारे कृषि वैज्ञानिकों को इस दिशा में आगे आना चाहिए और बदलते समय के साथ कृषि की पद्धति में भी नवीनतम शोध किए जाने की जरूरत है । पाँच प्रजातियों पर प्रयोग करके मैंने तो ढिखा दिया की यह संकल्पना कोई कल्पना नहीं बल्कि यह एक वैज्ञानिक यथार्थ है । इन पादपों का निरीक्षण और सत्यापन भी मैंने सरकारी प्रतिष्ठित संस्थानों से कराया है ताकि कहीं पर भी कोई इस शोध पर उंगली न उठा सके ।

भारत के विद्वानों / वैज्ञानिकों में लाखों गुण होने के बावजूद एक कमी यह है की वे किसी भारतीय विद्वान द्वारा किए पहले शोध या नए प्रयास को स्वीकार करने में हिचकते हैं , यदि किसी भारतीय विद्वान ने कोई शोध किया हो तो वे इसे संदेह की नज़र से देखते हैं लेकिन वही शोध किसी विदेशी ने किया हो तो आँख मूँद कर विश्वास कर लेते हैं । भारतीय विद्वान को अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करनी पड़ती है । इसलिए ही इस शोध से संबन्धित सभी छाया चित्र इस शोध के साथ संलग्न हैं । साथ ही मैंने अपना संक्षिप्त परिचय भी नीचे दे दिया है ताकि कोई इस संबंध में अधिक जानकारी लेना चाहे तो वह संपर्क कर सकता है ।

डा जयंती प्रसाद नौटियाल
9900068722

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