मोदी कुछ बोले ,हमारे अनुभव ने ऐ बताया !
उतराखण्ड ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का मतलब , राज्य के प्राकृतिक संसाधनों,घरेलू इन्फैक्चर्स को कारपोरेट के हवाले करना :- अनन्त आकाश
ग्लोबल इन्वेस्टर समिट के बहाने ,यह दावा किया जा रहा है कि उत्तराखण्ड में चहुमुंखी विकास होगा पीएम मोदी द्वारा शुभारंभ किये गये ग्लोबल इन्वैस्टर समिट में कहा गया है कि राज्य में रोजगार की सम्भावनाओं पर चार चांद लगेंगे ,इस दौरान पीएम ने कहा उत्तराखण्ड सैनिकों की भूमि है ,जबकि हकीकत यह है मोदी सरकार द्वारा सेना में अग्निबीर योजना ने सर्वाधिक नुकसान उत्तराखण्ड के सैनिक परिवारों को पंहुचाया है ।गत बर्ष रक्षा क्षेत्र की प्रतिष्ठित आयुध निर्माणी फैक्ट्रियों को नीजि हाथों में बेचकर यहां सैकड़ों परिवारों का रोजगार छीना गया ,मोदीजी की नये इण्डिया में रहते डबल इन्जन सरकार के रहते हुये पहले के मुकाबले सरकारी नौकरियों में भारी कटौती के साथ ही कम वेतन में आउटसोर्स पर नौकरियों द्वारा युवाओं का शोषण किया जा रहा है,नये इण्डिया में राज्य में ओनजीसी ,बीएचईल ,idpl ,एनटीपीसी ,thdc, सरकार व सार्वजनिक प्रतिष्ठानों आदि में रोजगार पहले के मुकाबले काफी कम हुआ है । सरकार द्वारा श्रम कानूनों को कमजोर कर फैक्टरियों में मजदूरों से कम बेतन में ज्यादा काम के लिऐ जाने के लिऐ विवश किया जा है ,औधोगिक क्षेत्रों में काम का 8 घण्टे के समय बजाय10 से 12 घण्टे तक है ,स्कीम वर्कर आंगनबाड़ी ,आशाओं तथा भोजनमाताओं काम का बोझ बहुत ज्यादा है तथा अक्सर वीआईपी मूमैन्ट में इनपर अतिरिक्त कार्य लिया जाना आम बात है ,सफाई कर्मियों को काम मुकाबले काफी कम बेतन व इनका रोजगार अस्थाई है ।समिट के नाम पर देहरादून राजधानी को चकाचौंध पर कई सौ करोड़ खर्च हुऐ हैं ,जबकि देहरादून कि 55प्रतिशत आबादी मलिन बस्तियों में रहकर नारकीय जीवन जीने के लिऐ विवश हैं ।समिट से पहले देहरादून के मुख्य मार्गों से रेहड़ी ,पटरी तथा लधु व्यवसायियों को डण्डे के बल पर घर बैठने के लिऐ मजबूर किया गया है । समिट में ऐसे -ऐसे कारपोरेट घराने शामिल हो रहे हैं ,जिनका स्वयं की पृष्ठभूमि जन विरोधी रही है, हाल ही में इन्ही के कारण सिल्यक्यारा उत्तरकाशी सुरंग घटना घटित हुई । आज कूड़े उठाने से लेकर ,2700 करोड़ के उत्तराखण्ड रेलवे परियोजना , चारधाम सड़क परियोजना (आल वेदर रोड़),स्मार्ट सिटी आदि अनेक परियोजनाऐं दिल्ली पीएमओ से निर्धारित हो रही हैं, जिसका ठेका अडानी ,अम्बानी जैसे बड़े – बड़े कारपोरेट घरानों को है ,तथा छोटे से बड़े कामौं में गुजराती ,हरियाणवी कम्पनियां देख रही हैं ,स्थानीय लोगों से लगातार रोजगार छीना जा रहा है, हमें याद है कि बर्ष 1977 में रोजगार के लिऐ फैक्ट्री लगाने के लिऐ हमारे गांव वालों ने सैकड़ों नाली भूमि सरकार को दान दी थी ,जहाँ लिसा ,तारपिन की फैक्ट्री लगि जिसमें सैकड़ों क्षेत्र वासियों कौ रोजगार आज जहाँ निगम टूरिस्ट काटेज हैं। अब वहां का मालिक भी कोई इन्वेस्टर होगा । गढ़वाल एवं कुमांऊ विकास निगम के कीमती बंगलें इन कम्पनियों देने की तैयारी है ,ऊर्जा प्रदेश की बिजली पहले के मुकाबले दिनों दिन मंहगी हो रही अब इस विभाग कौ भी अडानी ,अम्बानी आदि कौ बेचने कि तैयारी है ,साथ हि मंहगाई राशन से लेकर शिक्षा ,स्वास्थ्य ,परिवहन एवं सड़क टैक्स में जनता कौ ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं,5 किलो राशन तथा किसानों 500 रूपये प्रतिमाह के मकाबले उनसे चौर दरवाजे से कई गुना बसूला जा रहा है , ऐसे में समिट से राज्य का भला का दावा करना सरासर बेमानी होगी पूर्व में नारायण तिवारी सरकार ने राज्य में औधौगिक विकास के लिये जौ प्रयास किये थे ,उसका लाभ भी औधौगिक घरानों ने जम के उठाया था ,सारी पूंजी का लाभ उत्तराखण्ड कौ नहीं बल्कि अन्य राज्यों की सरकारों कौ हुआ ,क्योंकि छूट का लाभ उठाने के लिऐ बाहर से कल पुर्जे लाकर यहाँ प्रोडक्शन के नाम पर एस्बेलिंग किये गये तथा लेबलिंग अन्य राज्यों में कर टैक्स का लाभ उन्हिं राज्यों कौ मिलता रहा ।
जिस उम्मीद को लेकर उत्तराखण्ड की जनता ने अनवरत् संघर्ष तथा आन्दोलनकारियों ने शहादतें दी थी । उम्मीद थी कि राज्य बनने के बाद उनका सही मायनों में अपना शासन होगा तथा जनता के अरमान पूरे होंगे । किन्तु शासकदलों की जनविरोधी नीतियों के कारण न केवल उनके अरमान अधूरे रह गये हैं ,बल्कि हमारे राज्य की स्थिति पहले के मुकाबले बद से बदतर हुई है ।अनियोजित विकास ,23 बर्ष में स्थानीय राजधानी गैंरसैण न बनना ,बेरोजगारी की भयावह स्थिति तथा जनअसुविधाओं के परिणामस्वरूप तेजी से बढ़ते पलायन , पहाड़ी जिलों में जनसंख्या की कमी ने विधानसभा सीटों में भारी कटौती हो रही है तथा आबादी के बहुत बड़े हिस्से का पहाड़ की तलहटियों के अलावा देहरादून ,हरिद्वार ,उधमसिंहनगर तथा नैनीताल के तराई क्षेत्र में पलायन हो रहा है तथा मैदानी जिलों पर आबादी का दबाव बढ़ रहा है , भारी बदलाव के परिणामस्वरूप मलिन बस्तियों का तेजी से बिस्तार तथा जंगलों का तेजी से कटान व खेत खलिहान कंक्रीट में बदल गये हैं । आजादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्रदुषित माहौल में रहने के लिये बिवश है । अनियोजित विकास ने भ्रष्ट राजनेताओं अफसरों ,भूमाफियाओं की गैरकानूनी गतिविधियों को भारी बढ़ावा दिया है ,जो बढ़ते अपराधों का कारण भी है ।
भ्रष्ट राजनीतिज्ञों ,भूमाफियाओं तथा भ्रष्ट अफसरशाही का नापाक गठबंधन हमारे राज्य के लिये एक बहुत ही बिकराल समस्या बनी हुई है । ऐसा कोई नेता ,अधिकारी तथा व्यवसायी नहीं जो जमीनों की खरीद फरोख्त तथा सरकारी भूमि पर कब्जे से न जुड़ा हो ,यहाँ तक कि पहाड़ में भी इनका नैक्सस तेजी से सक्रिय है ,जिसे कारपोरेट घरानों का बरदहस्त है । अंकिता जैसे जधन्य हत्याकांड भी इसी का परिणाम है ।आज जिससे निकल पाना अब काफी मुश्किल है, फिलहाल हमें हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखण्ड राज्य के लिये जन आकांक्षाओं के अनुरूप योजनाओं तथा भू कानून बनाने की आवश्यकता है जो भूमि पर अन्दान्दुन्द खरीद फरोख्त तथा कब्जों को रोक सके । आज बिडम्बना यह भी है कि हरेक निर्माण में गुजराती ,हरियाणा तथा दिल्ली बेस कम्पनियां शामिल हैं ,जिनकी स्वयं में कोई साख नहीं है ।
राज्य में केन्द्र द्वारा पोषित आधिकांश योजनाऐं यहाँ की जनता के हितों के अनुरूप नहीं है । राज्य नीति आयोग की राज्य विकास में भूमिका लगभग शून्य है ।भाजपानीत गठबंधन जब से केन्द्र एवं राज्य में डबल इंजन के नाम से सत्तासीन हुई तबसे राज्य सरकार की भूमिका लगभग नगण्य है । राज्य सरकार केवल केन्द्र की हाथों कठपुतली के अलावा कुछ नहीं है। राज्य में जो योजनाओं का आयेदिन ढोल पीटा जा रहा उनमें से अधिकांश कोरपोरटपरस्त हैं ।जिनका लाभ यहाँ की जनता को न होकर अन्तत: कोरपोरेट घरानों व उनके चेहतों को ही होता आया है ।अनियोजित विकास ,अनुभवहीन लोगों द्वारा बनायी गई योजनाओं ने तो हमारे राज्य को तबाह करके रख दिया है ।पिछले कुछ सालों में बड़े लोगों के हितों के लिये अकेले आलवेदर रोड़ ,सड़क चौड़ीकरण ,फ्लाईओवरों ,भीमकाय निर्माण की आढ़ में लाखों – लाख पेड़ ठिकाने लगा दिये गये हैं ,तथा अनापशनाप कटिंगें करवाकर पहाड़़ घाटियों को पेड़ एवं बनस्पति बिहीन कर दिया जा रहा है ,परिणामस्वरूप निरन्तर प्राकृतिक आपदाओं में बृध्दि हो रही है ।
सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के खत्म होने से नीजि वाहनों की बाढ़ ने यातायात व्यवस्था मंहगी तथा ठप्प कर दी है । इसके रोकथाम पुलिस बल या फिर चालान काटने से नहीं हो सकता,कल हि हाईकोर्ट ने इस सन्दर्भ में टिप्पणी कि है ,चालान नहीं व्यवस्था बनाने पड़ेगी । इसके बजाय नीजि वाहनों पर अंकुश लगाया जाऐ ,तभी यातायात से लेकर प्रदुषण की समस्या मेंं कमी आऐगी । जनहित में राज्य के मुखिया ,राज्य के नेताओं एवं नौकरशाहों को चाहिये कि अपने वाहनों एवं सुख सुविधाओं तथा अनावश्यक खर्चों में कटौती करें ।मुख्यमंत्री से मन्त्री या नौकरशाह जब अपने पार्टी एवं नीजि कार्यो से जाऐं ,तो खर्च स्वयं वहन करें ।
नेता एवं अफसर चन्द दिनों में धनासेठ कैसे हो जाते हैं ? इनकी सम्पत्तियों को जांच के दायरे में लिया जाना चाहिए । यह भी सुनिश्चित हो राष्ट्रीय नेताओं की इस राज्य में कहाँ -कहाँ सम्पत्ति है ? सबका सही मायनों में खुलासा होना चाहिए ।
1994 में अलग राज्य के आन्दोलन में बडी़ संख्या में आन्दोलनकारियों ने अपनी शहादतें दी ,सिर्फ इसलिए कि उनकी भावी पीढियों को वो वह सब कुछ न देखना पड़े जो सदियों से वे देखते आयें हैं । आज राजनेताओं,लालफीताशाही व माफियाओं के नापाक गठबंधन ने हमारे संसाधनों की खुली लूट खसौट कर जनता के स्वप्न को चकनाचूर किया है । रोजगार ,शिक्षा ,स्वास्थ्य , आदि संसाधनों की लूट पहले के मुकाबले और अधिक तेज हुई है , इस लूट में कारपोरेट जगत एवं राजनेता सीधे तौर पर शामिल हैं ।
*उत्तराखण्ड की जनता का कुर्बानी*एवं संघर्ष की* *पृष्ठभूमि :- हमारे प्रदेश की जनता का संघर्षों एवं कुर्बानियों की परम्परा रही है ,और राष्ट्र के निर्माण में यहाँ के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका उल्लेखनीय है । इसी राज्य से पेशावर विद्रोह के महानायक कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली ,क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस, सुभाषचंद्र बोस द्वारा आई एन ए की स्थापना में यहाँ के सैनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। टिहरी राजशाही के खात्मे में कामरेड नागेंद्र सकलानी ,मोलू भरदारी ,श्री देव सुमन शहादत की भूमिका ऐतिहासिक है ।राष्ट्र निर्माण में गोविबल्लभ पन्त ,हेमवतीनंदन बहुगुणा ,कामरेड एम एन राय ,पी सी जोशी ,,राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ,महाबीर त्यागी आदि अनेक नेताओं की भूमिका उल्लेखनीय है । हमारे राज्य में मेहनतकश अवाम को संगठित कर उनको संघर्ष में उतारने में कम्युनिस्टों की उल्लेखनीय योगदान को सदैव याद किया जाऐगा । जुल्म सितम के खिलाफ कम्युनिस्ट हर जगह अगवा रहे हैं । उत्तराखण्ड की महिलाओं द्वारा जल ,जंगल ,जमीन के लिये किये गये ऐतिहासिक संघर्ष अपने में एक मिशाल है । इनमें चिपको आन्दोलन की प्रेणता गौरादेवी ,बीरांगना तिल्लू रौतेली तथा शराब के खिलाफ अनवरत संघर्ष चलाने वाली टिंचरी माई का नाम उल्लेखनीय है । देश की सुरक्षा में यहाँ के जांबाजों की अनगिनत कुर्बानी हमारी समृद्धि एवं गौरवशाली परम्परा का हिस्सा है ,जिसे हमारे देश व दुनिया ने स्वीकारा है ।
आज फिर से कॉरपोरेट परस्त नीतियों कै खिलाफ संघर्ष तेज करने की आवश्यकता है ,तभी उत्तराखण्ड राज्य की सम्पदा सुरक्षित रहेगी ।