
देहरादून : आज संयुक्त बयान जारी करते हुए राज्य के अनेक विपक्षी दल एवं जन संगठनों ने आवाज़ उठाया कि जैसे कई लोगों की आशंका थी, उत्तराखंड राज्य में निकाय चुनाव ख़त्म होते ही नफ़रती हिंसा फिर शुरू हो गयी है। देहरादून के नथुवाले क्षेत्र एवं हरिद्वार के लक्सर में हुई हिंसक घटनाओं का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि चंद संगठनों ने कथित यौन शोषण के मामलों को लेकर हिंसा की हैं और खास तौर पर देहरादून में धर्म के आधार पर बेकसूर अन्य लोगों पर हमले किये हैं। मुक़दमे दर्ज हुए हैं लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि 2017 से और ख़ास तौर पर 2021 से दर्जनों ऐसी घटनाएं हुई हैं और इन गंभीर अपराधों को ले कर एक भी व्यक्ति पर सख्त कार्यवाही आज तक नहीं हुई है। यहाँ तक कि फ़र्ज़ी मामले के आधार पर 2023 में उत्तरकाशी के पुरोला में हिंसा और नफरती भाषणों द्वारा दर्जनों बेकसूर परिवारों को भगाया गया था, और अक्टूबर 2024 में धर्मस्थल को ले कर निराधार आरोप लगा कर उत्तरकाशी में पुलिस पर पथराव किया गया था, लेकिन फिर भी ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। अब ऐसे अपराधें फिर शुरू हो गए हैं, और अभी भी पुलिस प्रशासन मुकदमा दर्ज करने से ज्यादा कोई कार्यवाही करता नहीं दिख रहा है। इसको बेहद चिंताजनक एवं निंदनीय कहते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड की संस्कृति शांतिपूर्ण रही है और यह वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, श्री देव सुमन, नागेदंर सकलानी, जयानंद भारती और अन्य ऐसे अनेक नायकों की धरती है। उन्होंने मांग उठाया कि संविधान और कानून का राज को कायम रखने के लिए सरकार तुरंत उच्चतम न्यायलय के 2018 के फैसलों एवं भारतीय न्याय संहिता के धारा 197 के तहत ऐसे अपराधों को रोकने के लिए व्यवस्था बनाये और ज़िम्मेदार व्यक्तियों एवं संगठनों पर सख्त कार्यवाही करे।
*संयुक्त बयान*
*प्रायोजित नफरती हिंसा को बर्दाश्त नहीं करेंगे*
जैसे कई लोगों की आशंका थी, उत्तराखंड राज्य में निकाय चुनाव ख़त्म होते ही नफ़रती हिंसा फिर शुरू हो गयी है। 4 और 5 फरवरी को देहरादून के नथुवाला क्षेत्र और 9 तारीख को हरिद्वार के लक्सर में फिर चंद संगठनों ने कथित यौन शोषण के मामलों को लेकर हिंसा की हैं और खास तौर पर देहरादून में धर्म के आधार पर बेकसूर अन्य लोगों पर हमले किये हैं। देहरादून में नामजद मुकदमा दर्ज हुआ है और हरिद्वार में “अज्ञात लोगों” पर मुकदमा दर्ज हुआ है, जिन बातों का हम स्वागत करते हैं। लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि 2017 से और ख़ास तौर पर 2021 से दर्जनों ऐसी घटनाएं हुई हैं और इन गंभीर अपराधों को ले कर एक भी व्यक्ति पर सख्त कार्यवाही आज तक नहीं हुई है। यहाँ तक कि फ़र्ज़ी मामले के आधार पर 2023 में उत्तरकाशी के पुरोला में हिंसा और नफरती भाषणों द्वारा दर्जनों बेकसूर परिवारों को भगाया गया था, और अक्टूबर 2024 में धर्मस्थल को ले कर निराधार आरोप लगा कर उत्तरकाशी में पुलिस पर पथराव किया गया था, लेकिन फिर भी ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। अब ऐसे अपराधें फिर शुरू हो गए हैं, और अभी भी पुलिस प्रशासन मुकदमा दर्ज करने से ज्यादा कोई कार्यवाही करता नहीं दिख रहा है। यह बेहद चिंताजनक एवं निंदनीय बात है। उत्तराखंड की संस्कृति शांतिपूर्ण एवं लोकतान्त्रिक रही है। यह वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, श्री देव सुमन, नागेदंर सकलानी, जयानंद भारती और अन्य ऐसे अनेक नायकों की धरती है। इसलिए हम सरकार से मांग करना चाहेंगे कि हमारे संविधान और कानून का राज को कायम रखने के लिए तुरंत उच्चतम न्यायलय के 2018 के फैसलों एवं भारतीय न्याय संहिता के धारा 197 के तहत ऐसे अपराधों को रोकने के लिए व्यवस्था बनाया जाए और ज़िम्मेदार व्यक्तियों एवं संगठनों पर सख्त कार्यवाही की जाए।
निवेदक
समर भंडारी, राष्ट्रीय कौंसिल सदस्य, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
डॉ SN सचान, राष्ट्रीय सचिव, समाजवादी पार्टी
इंद्रेश मैखुरी, राज्य सचिव, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मा – ले)
अनंत आकाश, महानगर सचिव, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
नरेश नौडियाल, महासचिव, उत्तराखडं परिवर्तन पार्टी कमला पंत, उत्तराखंड महिला मंच राजीव लोचन साह, उत्तराखंड लोक वाहिनी
शंकर गोपाल एवं विनोद बडोनी, चेतना आंदोलन
मुनीश कुमार, समाजवादी लोक मंच
तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा
हीरा जंगपांगी, महिला किसान अधिकार मंच
शंकर बर्थवाल, सद्भावना समिति उत्तराखंड
अरण्य रंजन, खाड़ी
राकेश अग्रवाल, देहरादून
एवं अन्य संगठन और साथी