देहरादून : 1 मई को विश्वभर का मेहनतकश अवाम लाल झण्डे के पीछे एकजुट होकर अपने शहीदों की कुर्बानियों को याद करते हुऐ अपने बेहतरीन भविष्य के संकल्प की प्रतिज्ञा करता है ।
आज मेहनतकश अवाम 8 घण्टे काम करता है ।वास्तव में इसकी पृष्ठभूमि में मजदूर वर्ग का सतत् संघर्षों एवं कुर्बानियों का इतिहास रहा है ।
8 घण्टे काम ,8 घण्टे आराम तथा 8 घण्टे मनोरंजन की मांग का अपने में लम्बें संघर्ष एवं कुर्बानियों का एक इतिहास है ।जिसकी कहानी अमेरिका के शिकागो नरसंहार से काफी पहले शुरु हो चुकी थी । जब मजदूर वर्ग को कल कारखानों ,खेत खलिहानों में बहुत ही कम दाम में 14 घण्टे से भी अधिक समय काम करने के लिये मजबूर किया जाता था । वे नारकीय जीवन जीने के लिऐ विवश थे,यदि वे थोड़ा भी विरोध करते थे तो उन्हें प्रताड़ना सहनी पड़ती थी। यूं कहें उनकी हालात बद से बदतर थी ।
विश्व के उभरते पूंजीवाद ने अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए बड़े – बडे़ कल कारखाने लगाये जिन्हें चलाने के लिए मजदूरों की आवश्यकता थी ।
इस प्रकार पूंजीवाद ने विश्वभर में मजदूरों को एक छत के नीचे ला खड़ा किया ।मजदूर समझ चुके थे कि उनसे पशुओं की तरह काम लिया जाता और इसके ऐवज में उन्हें कुछ नहीं मिलता । न सोने ,न खाने न मंनोरंजन का समय ही उनको मिलता है । इस प्रकार पूंजीवाद के निर्मम शोषण ने उनमें गुस्सा फूट फूटकर भरा हुआ था । खासकर जिसका अमेरिका ,यूरोप केन्द्र था ,वे शोषण के खिलाफ सड़कों पर उतर आये तथा काम के घण्टे कम करने तथा काम के उचित दाम की मांग का संघर्ष और अधिक तेज हुआ ।मजदूरों के बड़े -बड़े जलूस एवं हडतालें हुई ।पूंजीवाद को उनकी एकता कतई मंजूर नहीं थी ,इसलिए पूंजीवादी सत्ता ने मजदूरों का कत्लेआम किया ।
इस प्रकार अमेरिका में मजदूरों ने व्यापक हड़ताल की जिसका दायरा बहुत ही बड़ा था । 1 मई 1886 में शिकागो शहर के मजदूरों के विद्रोह ने मेहनतकशों के जीवन में ऐतिहासिक परिवर्तन किया मजदूरों की 8 घण्टे काम की मुराद पूरी हुई । इसका प्रचार इतना हुआ कि तबसे मजदूर दिवस पूरे विश्वभर में 1 मई मजदूर वर्ग की एकजुटता के रूप में मनाये जाने लगा । हालांकि मजदूर वर्ग को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी ,शिकागो की सड़क मजदूरों के खून से लतपत हुई तथा मजदूरों को भारी शहादत देनी पड़ी ,पुलिस ने उन्हें जेल में डाला उन पर झूठे मुकदमों के तहत फांसी की सजाऐं हुई । शिकागो में उनके खून से लतपत कपड़े आगे चलकर मजदूरों के संघर्ष एवं एकता का प्रतीक लाल झण्डे के रूप मेंं जाना गया । इसी झण्डे के नीचे विश्वभर के मेहनतकश एकजुट हुऐ । कार्ल मार्क्स उनके महान मित्र फेडरिक एंगेल्स ने मजदूर वर्ग का विचार भी इस दौर में लिखा तथा दुनियाभर के मजदूरों एक हो का नारा बुलन्द किया ।आगे चलकर 1917 में सोवियत रूस में कामरेड लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक क्रान्ति हुई सोवियत रूस ने जारीशाही का खात्मे के बाद लालझण्डे के तले पहली समाजवादी व्यवस्था स्थापित की । समाजवादी व्यवस्था के बाद वैश्विक स्तर पर मजदूरों को अनेक देशों में ट्रेड यूनियन अधिकार मिले अन्ततः भारत में भी अंग्रेजों को 1926 में श्रम कानूनों का अधिकार देना पड़ा ।भारत में मजदूरों के आजादी के आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका को रोकने के लिये अंग्रेजी हुकूमत ने जैसे ही बर्ष 1929 में ट्रेड डिस्पूय्ट बिल एसेम्बली पेश किया , वैसे ही भगतसिंह एवं उनके साथियों ने दिल्ली एसेम्बली में बम फेंककर इसे विफल किया । ट्रेड यूनियन अधिकारों के तहत भारत में बर्ष 1973 तक कारखानों, संस्थानों तथा सरकारी कार्यालयों में स्थायी रोजगार मिलता रहा है , किन्तु इसके बाद इसमें भारी फेरबदल की प्रक्रिया की शुरूआत हुई पूंजीवादी सरकारें धीरे – धीरे कारपोरेट एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पिछलग्गू बनने लगी तथा कल्याणकारी राज्य की भावनाओं के खिलाफ खुलकर खड़ी होने लगी ।सोवियत संघ में समाजवादी व्यवस्था पराभव का असर भारत सहित विश्व में दिखने लगा ।
अमेरिका की ओर झुकाव के चलते बर्ष 1991 में कांग्रेस के पीएम नरसिंम्हा राव ने पुरानी नीतियों को पलटना शुरू किया तथा देश में नीजिकरण तथा ठेकेदारी प्रथा लागू हुई ,जिसे संघ परिवार के नेतृत्व वाली भाजपा की मोदी सरकार ने बडे़ ही बेरहमी के साथ आगे बढ़ाकर बचे खुचे रोजगारों को ही नहीं बल्कि पूरे ढा़ंचे को ही तहस नहस कर कोरपोरेट को ओने पौने दामों लुटवाने की शुरुआत कर देश को कई बर्ष पीछे ढकेलने का कार्य किया है । आज हमारे देश में स्थायी रोजगार लगभग समाप्त हो चुका है। काफी समय से मोदी सरकार मजदूरों के अधिकारों को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए चार श्रमिक संविदाओं को लाकर मजदूरों को मालिकों की दया पर छोड़ने का कुत्सित प्रयासों जुटी हुई ,जिसका मजदूरवर्ग कड़ा प्रतिरोध कर रहे हैं ।
मई दिवस के सन्दर्भ कुछ तथ्य ;-
(1) 1 मई को मई दिवस (May Day) अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ (International Workers’ Day) विश्वभर में मनाया जाता है।
(2) 1889 में समाजवादी समूहों और ट्रेड यूनियनों के एक अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने शिकागो में हुई हे मार्केट (Haymarket, 1886) घटना को याद करते हुए श्रमिकों के समर्थन में 1 मई को ‘मई दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था ।
(3) अमेरिका ने वर्ष 1894 में श्रमिक दिवस को एक अवकाश के रूप में मान्यता दी बाद को कनाडा ने भी लागू किया।
(4) वर्ष 1889 में समाजवादी और श्रमिक दलों द्वारा बनाई गई संस्था सैकिण्ड इंटरनेशनल (Second International) ने घोषणा की कि अब से 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनायेगे
(5) वर्ष 1904 में, एम्स्टर्डम (Amsterdam) में इंटरनेशनल सोशलिस्ट काॅॅन्ग्रेस (International Socialist Congress) ने सभी सोशल डेमोक्रेटिक संगठनों और सभी देशों की ट्रेड यूनियनों को एक दिन 8 घंटे काम के कानून की मांग को लेकर एक मई को जोरदार प्रदर्शन करने का आह्वान किया था।
(6) 1916 में अमेरिका ने वर्षों आन्दोलनो की मांग के पश्चात् 8 घंटे के कार्य समय को मान्यता दी
अन्त में हे मार्केट घटना
1 मई, 1886 को शिकागो मजदूरों हड़ताल ,जो आगे चलकर वामपंथी मज़दूर आंदोलनों का केंद्र बन गया इसी 1 मई को शिकागो में मज़दूरों का एक विशाल सैलाब उमड़ा और संगठित मज़दूर आंदोलन के आह्वान पर शहर के सारे कल कारखाने बंद कर दिये ये विश्व समुदाय को
मज़दूर आंदोलन की वर्गीय एकता के इतने शानदार और संगठित विरोध का एहसास नहीं हुआ था। मजदूर आंदोलन ने अमेरिकी मज़दूर वर्ग की लड़ाई के इतिहास में एक नया अध्याय की शुरूआत की । हालाँकि इस दौरान शिकागो प्रशासन एवं कारखाना मालिकों को मजदूरी एकजुटता किसी भी कीमत पर पसन्द नहीं थी और उन्होंने मज़दूरों को गिरफ्तार करना शुरू किया तत्पश्चात् पुलिस और मज़दूरों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई, जिसमें काफी मजदूर शहीद एवं हताहत उन्हें गिरफ्तार कर आजीवन कारावास अथवा मौत की सजाऐं दी गई।श्रमिकों की मांग थी 8 घण्टे काम लिया जाऐ ।
श्रमिक किसी भी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। श्रमिकों की इसी भूमिका को एक पहचान देने और श्रमिक आंदोलनों के गौरवशाली इतिहास को याद करने के उद्देश्य से ‘मई दिवस’ अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ मनाया जाता है।
जब अमेरिका में फैक्ट्री-व्यवस्था शुरू हुई, लगभग तभी यह संघर्ष भी सामने आया। हालाँकि अमेरिका में अधिक मज़दूरी की मांग, शुरुआती हड़ताल और संघर्ष में सर्वाधिक प्रचलित थी, किंतु जब मज़दूरों ने अपनी मांगों को सूचीबद्ध किया तो काम के घंटे कम करने का प्रश्न और संगठित होने के अधिकार का प्रश्न केंद्र में रहा।
भारत में मज़दूर दिवस
भारत में मज़दूर दिवस पहली बार चेन्नई ( *तत्कालीन*मद्रास* ) में 1 मई, 1923 को आयोजित गया था। यह पहल सर्वप्रथम लेबर किसान पार्टी के प्रमुख सिंगारवेलर द्वारा की गई थी।
लेबर किसान पार्टी के प्रमुख सिंगारवेलर ने इस अवसर को मनाने के लिये दो बैठकों का आयोजन किया। इनमें से एक ट्रिप्लिकेन बीच और दूसरी मद्रास उच्च न्यायालय के सामने समुद्र तट पर आयोजित की गई।
इन बैठकों में सिंगारवेलर ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार को भारत में मई दिवस या मज़दूर दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करनी चाहिये।
मज़दूर दिवस या मई दिवस को भारत में ‘ *कामगार*दिन* ’ के रूप में भी जाना जाता है, मराठी में इसे ‘ *कामगार*दिवस* ‘ और तमिल में ‘ *उझिपालार* नाल’ ( *Uzhaipalar* *Naal* ) कहा जाता है ।