उत्तराखंडगढ़वालदेहरादून

डीएलरोड़ चौक अम्बेडकर के नाम‌ से जाना जायेगा, आदम कद मूर्ति का अनावरण विधायक खजानदास ने किया।

देहरादून : आज देहरादून के डीएल चौक को डाक्टर भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति के अनावरण के साथ ही अम्बेडकर के नाम से जाना जायेगा । इस ऐतिहासिक क्षण के हजारों लोग गवाह बने। जब अखिल भारतीय अम्बेडकर युवक संघ देहरादून ने उक्त कार्यक्रम आयोजन कर जिसमें जनप्रतिनिधि ,राजनैतिक ,सामाजिक तथा दलित समाज जाने माने लोगों ने हिस्सेदारी की ।कार्यक्रम कुल मिलाकर निचोड़ यह है कि दबाकुचला समाज बाबा साहेब को अपना मसीहा मानता है । इस अवसर पर मुख्य अतिथि क्षेत्रीय विधायक खजान दस , विशिष्ट अतिथि मेयर सुनील उनियाल गामा , सी.पी.आई.(एम) के सचिव व पूर्व ब्लॉक प्रमुख कामरेड राजेन्द्र पुरोहित , भीम आर्मी के प्रदेश अध्यक्ष महक सिंह थे।

इस अवसर पर सर्वप्रथम कल्याण मित्र एस.एल.पाटिल ने धम वंदना की तत विधायक खजान दस , विशिष्ट अतिथि मेयर सुनील उनियाल गामा , सी.पी.आई.(एम) के सचिव व पूर्व ब्लॉक प्रमुख कामरेड राजेन्द्र पुरोहित , महानगर सचिव अनंत आकाश , संघ के अध्यक्ष बंटी कुमार सूर्यवंसी संरक्षक व सीटू के जिला महामंत्री लेखराज ने मूर्ति से कपड़ा हटा कर अनावरण किया ।

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि डाक्टर भीमराव अम्बेडकर भारतीय दलित समाज के सबसे बड़े नेताओं में से ही नही थे बल्कि उन्होंने भारत के समाज का गहराई से अध्ययन किया और समाज मे गैर बराबरी के खिलाफ आवाज ही नही उठायी उससे मुक्ति का रास्ता दिखया वे समाज के सभी हिस्सो के अग्रणी नेता थे । उनका नाम हमारे देश संविधान के निर्माता के रूप में बडे़ ही आदर से लिया जाता है । अम्बेडकर महिला अधिकारों के प्रबल हिमायती थे तथा अपने समय के विचारकों के उलट वे हिन्दू धर्म जाति सुधार ही नहीं बल्कि वे समाज से जाति का पूर्ण खात्मा करना चाहते थे । वे वर्ण व्यवस्था को दैविक अनुमोदन देने वाली जाति तथा हिन्दू धर्म दोंनो की भर्त्सना करते रहे हैं । मार्च 1927 में रायगढ़ जिले के महाड़ में चवदार तालाब के संघर्ष में डा०भीमराव अंबेडकर ने हज़ारों दलितों को तालाब से पानी पीने के लिए लामबंद किया तथा महाड़ ही में 25 दिसम्बर 1927 को उन्होंने “मनुस्मृति दहन दिवस” मनाया जहाँ सार्वजनिक तौर पर मनुस्मृति का दहन किया। 1930 में नासिक समेत कई जगहों पर उन्होंने मंदिर प्रवेश के आंदोलन चलाए। वे जाति उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने वाले अथक योद्धा में से एक थे। उन्होंने गांधी के छूआछूत विरोधी अभियान को ऊंची जातियों के हित साधने के तथा वर्ण व्यवस्था को बनाये रखने के औजार के रूप में देखा।

अंबेडकर महज कोई उदारवादी या संवैधानिक प्रजातंत्रवादी नहीं थे। उनके प्रगतिशील विचारों ने बुर्जुवा उदारवाद की सीमाओं को तोड़कर रख दिया। उन्होंने चेतावनी दी थी कि आर्थिक और सामाजिक बराबरी के बिना संविधान तथा राजनैतिक जनतंत्र ढकोसला बनकर रह जायेगा। उनका आर्थिक कार्यक्रम पारम्परिक बुर्जुआ मापदंडों से काफी प्रगतिशील था। जब अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण की उनकी वकालत का विरोध इस तर्ज पर हुआ कि इससे स्वतंत्रता सीमित होगी, तब उन्होंने जबाब दिया-“यह स्वतंत्रता किसकी है और किसके लिए है? साफ है कि यह ज़मीदारों के लिए मालगुजारी बढ़ाने की, पूंजीपति के लिए काम के घंटे बढ़ाने तथा मज़दूरी की दर कम करने की स्वतंत्रता है। ”

अंबेडकर महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाले सतत योद्धा थे। आज़ादी के बाद पहली कैबिनेट में कानून मंत्री के तौर पर उन्होंने हिन्दू कोड बिल, जो महिलाओं को सम्पत्ति तथा उत्तराधिकार देता था, की पुरजोर वकालत की। कांग्रेस के भीतर तथा बाहर हिन्दू रूढ़िवादी ताकतों के प्रतिरोध का सामना करते हुए इस मुद्दे पर समझौता करने के बजाय अंबेडकर ने इस्तीफा देने का फैसला किया।

26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा में दिए अपने भाषण में उन्होंने कहा कि ” सामाजिक धरातल पर देखें तो भारतीय समाज श्रेणीबद्ध असमानताओं का समाज है। जहाँ कुछ लोगों के पास अथाह धन है तो वहीं बहुत से लोग गरीबी में जीवन बिता रहे हैं। 26 जनवरी 1950 के दिन हम अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में तो हमारे पास समानता होगी पर सामाजिक और आर्थिक जीवन में होगी। राजनीति में तो हम ‘एक व्यक्ति एक वोट, एक वोट एक मूल्य’ के सिद्धांत को स्वीकार कर लेंगे। पर सामाजिक व आर्थिक जीवन में असमानता होगी। राजनीति में तो हम “एक व्यक्ति ,एक वोट एक मूल्य को स्वीकार कर लेंगे।पर सामाजिक व आर्थिक संरचनाओं के चलते

जीवन समानता को नकारना जारी रखेंगे?अगर हमने इसे अधिक समय तक किया तो हम ऐसा, तो हम ऐसा राजनैतिक लोकतंत्र की संरचना को उखाड़ फैंकेगे जिसे इस संविधान ने इतनी मेहनत से तैयार किया है ।

अफसोस है कि हमारे हुकमरान अम्बेडकर को मूर्ति के रूप में पूजते आयें तथा उनके जयंती व निर्वाण दिवस पर बड़ी बड़ी बाते करते आये किन्तु आज भी दलित समाज की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है ,इसलिए समाज जातिभेद तथा साम्प्रदायिकता के खिलाफ सतत संघर्ष चलाया जाना जरूरी है ,जो अम्बेडकर जी सहित दलित समाज ने सदियों से झेला वह भावी पीढ़ियों को देखना न पड़े ,ऐसे समाज की स्थापना हो जहां आदमी का शोषण नहीं हो ।यही अम्बेडकर जी के सही मायनों याद करना होगा ।

इस अवसर पर सम्मान समारोह भी किया गया जिसमें मूर्ति दान डेटा रत्न सिंह , आये सभी मेहमानों का स्वागत व सम्मान किया गया , इस अवसर पर लेखरज ने कार्यक्रम का संचालन किया इस अवसर पर बंटी कुमार सूर्यवंसी दिलेराम रवि , अशोक कुमार , उमेश कुमार , राजवीर सिंह , पंकज सिंह , हेमन्त कुमार विजय , नोहर सिंह ,देवेंद्र , अजयपाल आकाश , दलीप चंद आर्य , रघुनाथ लाल आर्य , सुधीर कुमार , कपिल कुमार , चमन लाल , चरण सिंह , गीता रानी , पूर्व पार्षद सावित्री देवी ,पार्षद देविका रानी , नीतू , सुमन , तारा देवी , सतीश , सुखराम , आशा राम , शेखर कपिल सहित भारी संख्या में लोग उपस्थित थे।

कार्यक्रम के पश्चात दिन का भोजन किया गया जिसका जिम्मा चमन लाल व चरण सिंह ने लिया ।

इस अवसर पर आतिशबाजी की गई ।

 

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