उत्तराखंड

117 जयंती पर क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी को शत् शत् नमन।

देहरादून : इतिहास में ऐसा भी क्षण आया जब एक साधारण से दिखने वाली महिला ने वो कर दिखाया जो बड़े बड़े तुर्मखां करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते किन्तु दुर्गा भाभी ने वो कर दिखाया ।

उन्होंने साण्डर्स की हत्या के बाद राजगुरू और भगतसिंह को लाहौर से अंग्रेजों की कड़ी चौकसी के बावजूद उन्हें सुरक्षित निकालकर कोलकत्ता पहुंचाया । इनके पति क्रन्तिकारी भगवती चरण वोहरा थे जो रेलवे में इन्जीनियर थे, पिता बांके विहारी भट्ट कलैक्टैट में नाजिर थे । ये भी कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद के पास आखिरी वक्त में जो माउजर (पिस्टल) थी, वो भी दुर्गा भाभी ने ही उनको दिया था ।

उनका जन्म 7 अक्टूबर 1906 कौंशा शाहजहांपुर में हुआ तथा 14अक्टूबर 1999 गाजियाबाद में वो इस दुनिया से गुमनाम ही विदा हो गयी कुछ एक दो अखबारों में ही थोड़ी बहुत चर्चा हुई । आज़ादी के लम्बे समय के बाद भी इस विरांगना को वो जगह नहीं मिली जिसकी वो सही मायनों हकदार थी उनकी कुर्बानियों को भुला दिया गया ।जबकि हमारी सत्ताऐं आजादी के आन्दोलन के माफीबीरों को बड़े ही निर्लज्ज तरीके से पेश करने में लगी हुई हैं ।

कुछ ऐतिहासिक तथ्य :-

(1)1930 में भगत सिंह व उनके साथियों को फांसी की सजा की घोषणा हो चुकी थी।

(2)दुर्गा भाभी, सुखदेवराज और स्वामीराव के बीच तय हुआ कि वे फांसी के फैसले का बदला लेने के लिए बॉम्बे में गवर्नर को गोली मारेंगे।

(3)गाड़ी लेमिंगटन रोड पहुंची तो अंग्रेज सार्जेन्ट से मुठभेड़ हो गई, जिसमें स्वामीराव के आदेश पर सार्जेंट को दुर्गा भाभी और सुखदेवराज ने गोली मार दी।

(4)बॉम्बे में सावरकर बंधुओं को दुर्गा भाभी ने गोलीकांड की रात बाम्बे में वी डी सावरकर के घर पहुंचकर अपने चार वर्षीय बेटे शची को उनके घर छोड़ दिया यह कहकर कि चार दिन में वापस ले जाएंगी। वे कल्याण से मेरठ की गाडी पकड़कर फरार हो गईं।

(5)अगले दिन अखबार में खबर छपी कि सार्जेंट की हत्या में एक स्त्री भी शामिल थी। यह पढ़ते ही सावरकर ने घबराकर दुर्गा भाभी के बालक को घर से बाहर कर दिया और रघुनाथ वैशम्पायन ने फिर बालक को शरण दी। दुर्गा भाभी जब लौटीं तो सावरकर के इस व्यवहार के बारे में जानकर अत्यंत खिन्न हुईं। क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी, भगवती चरण बोहरा को सादर नमन ।

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