उत्तराखंड

हल्द्वानी हिंसा में दर्जनों पूर्व ब्यूरोक्रेट्स ने की राधा रतूड़ी से निष्पक्ष जांच की मांग।

देहरादून : उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को पूर्व नौकरशाहों ने एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने हल्द्वानी हिंसा में हुई कार्रवाई पर चिंता जाहिर की है. दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, भारत के पहले सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह, जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष वर्धन समेत 83 पूर्व नौकरशाहों ने अपने पत्र में हल्द्वानी की मौजूदा स्थिति पर गहरी भी चिंता जताई है।
दरअसल, मुख्य सचिव राधा रतूड़ी को लिखे पत्र में पूर्व नौकरशाहों (ब्यूरोक्रेट्स) ने हल्द्वानी की स्थिति को और बिगड़ने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई का अनुरोध किया है. खासकर हल्द्वानी के नागरिकों को राहत प्रदान करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की मांग की है. पत्र में लिखा गया है कि, सरकार को ऐसा कदम उठाए चाहिए जिससे राज्य के सभी नागरिक सुरक्षित महसूस कर सकें. इसके अलावा सुझाव दिया गया है कि प्रशासन को कानून लागू करने में निष्पक्ष रूप से काम करना चाहिए।
इसके अलावा नौकरशाहों ने कहा, ‘हम 8 फरवरी 2024 की हिंसा की निंदा करते हैं. इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. हम मृत नागरिकों के परिवारों और पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों और घायल नागरिकों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं.’ उन्होंने अपने पत्र में कहा कि जो खबरें जनता के बीच चल रही हैं, उससे प्रशासन के कार्यों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं, लेकिन उससे पहले वो चाहते हैं कि कुछ चीजें तत्काल की जाएं।
पत्र में कहा गया है कि, ‘हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में 16 फरवरी तक यानी 8 दिनों के लिए सख्त कर्फ्यू लगाया गया था. साथ ही इंटरनेट बंद कर दिया गया था. हालांकि, अब दिन के दौरान कर्फ्यू हटा दिया गया है, जिससे हजारों परिवार अपने घरों तक सीमित हो गए हैं. कर्फ्यू की वजह से वो कार्यस्थल नहीं जा पा रहे थे. साथ ही अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाए. साथ ही बाजार भी नहीं जा सके. इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं और बीमार लोगों पर पड़ा.’
उन्होंने रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि, ‘शांति बनाए रखने के लिए कर्फ्यू लगाया गया था. जबकि, प्रशासन का दावा है कि 8 फरवरी की रात को स्थिति पर काबू पा लिया गया था. उसके बाद से कोई हिंसा नहीं हुई, इसलिए कर्फ्यू को इतना लंबा बढ़ाया गया.’
वहीं, पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला दिया है. जिसके हवाले उन्होंने कहा है कि पुलिस निवासियों लोगों को मार रही है और संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही है. साथ ही लोगों को उनके परिवारों को सूचित किए बिना ही हिरासत में ले रही है, उन्हें कहां ले जाया जा रहा है या किस मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जा रहा है।

पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में ये भी कहा कि, ऐसी भी खबरें हैं कि इलाके से 300 से ज्यादा परिवार विस्थापित हो गए हैं. इन आरोपों की तत्काल जांच की जरूरत है. ये भी बताया गया है कि प्रशासन सहायता देने के बजाय उस क्षेत्र में खाद्य सामग्री बेच रहा है, जहां ज्यादातर अत्यंत गरीब परिवार रहते हैं. जो दैनिक मजदूरी पर जीवन यापन करते हैं, जबकि उन्हें सहायता दी जानी चाहिए थी।
पत्र में ये भी कहा गया है कि, 8 फरवरी यानी हल्द्वानी हिंसा के बाद से राज्य में घृणा अपराध बढ़े हैं. स्थानीय निवासियों ने बताया है कि हल्द्वानी के अन्य हिस्सों जैसे कि फतेहपुर और कमालुगांजा में मुस्लिम दुकानदारों को जबरन अपनी दुकानें खोलने से रोका जा रहा है।

वहीं, पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में समाचार कवरेज के हवाले से कहा कि, ‘हम चिंता के साथ ये भी कहना चाहते हैं कि 15 फरवरी को काशीपुर में छात्रा पर हमला मामले में एक आरोपी के घर के एक हिस्से को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया गया था. इस मामले में बिना नोटिस दिए कार्रवाई की गई. जो कानून का उल्लंघन है.उनका कहना है कि अभी तक जानकारी मिली है कि उत्तराखंड में यौन उत्पीड़न के किसी अन्य मामले में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इस कार्रवाई से स्पष्ट हो रहा है कि कार्रवाई केवल इसलिए की गई, क्योंकि आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से है।

पूर्व नौकरशाहों ने 12 जून 2023 और 18 जुलाई 2023 की घटनाओं का भी जिक्र किया है. उनका कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर एक अभियान चलाया गया. जिसके तहत पुरोला, बड़कोट और हल्द्वानी में दुकानों में तोड़-फोड़ एवं हिंसा की घटनाएं देखी गईं. इस दौरान दहशत का माहौल बनाया गया. साथ ही कई परिवारों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया गया।

पूर्व नौकरशाहों ने पत्र में साफतौर पर कहा कि, ‘ये बेहद परेशान करने वाली बात है कि नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाते हैं. ऐसे दर्जनों मामलों पर मुकदमा दर्ज नहीं किया जाता है. इस गंभीर अपराधों के लिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. ऐसे में कार्रवाई समाज के सभी व्यक्ति और वर्गों पर समान रूप से होनी चाहिए।

आखिर में उन्होंने उन सवालों की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि, 8 फरवरी को प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं. इसमें कोई विवाद नहीं है कि अतिक्रमण खाली करने का नोटिस 30 जनवरी को दिया गया था. लागू कानून के तहत कम से कम 10 दिनों के नोटिस की आवश्यकता होती है. उसके बाद 30 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए, लेकिन एक हफ्ते से भी कम समय के बाद प्रशासन ने बुलडोजर चलाया।
अपने पत्र में पूर्व नौकरशाहों ने अनुरोध किया है कि-

सभी क्षेत्रों से कर्फ्यू हटाया लिया जाए और प्रभावित परिवारों को राहत प्रदान की जाए. बच्चों, दिहाड़ी मजदूरों और बीमार लोगों की जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाए, मारे गए और घायल लोगों को तुरंत मुआवजा प्रदान किया जाए. इसमें सरकारी कर्मचारी और स्थानीय नागरिक दोनों शामिल हैं, घटना और उसके बाद प्रशासन की कार्रवाई की निष्पक्ष न्यायिक जांच की जाए. वर्तमान में हो रही कुमाऊं मंडल आयुक्त की जांच निष्पक्षता के लिहाज से पर्याप्त नहीं है, अवैध एक्शन और हिंसा के सभी आरोपों (सरकारी अधिकारियों के अवैध कृत्य सहित) की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

क्या था हल्द्वानी हिंसा? बता दें कि बीती 8 फरवरी को हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में मलिक का बगीचा में अवैध मदरसा और नमाज स्थल को हटाने के दौरान हिंसा भड़क गई थी. इस दौरान उपद्रवियों ने नगर निगम और पुलिस की टीम पर पथराव कर दिया था. इतना ही नहीं उपद्रवियों ने पत्थरों के साथ पेट्रोल बम भी टीम पर फेंके. इसके अलावा आगजनी की घटना देखने को मिली. कई वाहन फूंक दिए गए।

उपद्रवियों ने बनभूलपुरा थाने में भी आग लगा दी थी. वहीं, जब मामला बिगड़ा तो आनन-फानन में प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा. साथ ही शूट एट साइट यानी देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए गए. इस हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हुए तो कई लोग मारे भी गए. अभी तक 68 उपद्रवियों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. जिसमें 5 वांटेड भी शामिल हैं. वहीं, अभी तक 6 लोगों की मौत हो चुकी है।

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